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दिगम्बर जैन |
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विभाग कर लेना चाहिये । कालका विभाग न करके वे मौके कार्योंके करने से किसी भी कार्य में सिद्धि नहीं मिल सकती प्रत्युत मनुष्य अनेक आपदाओंके जाल में फँस जाता है ।
बहुत जरूरी काममें समय की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिये । अवश्य करने योग्य कार्यमें मौकाको हाथसे खोना न चाहिये ।
अपनी रक्षा में किसी समय भी प्रमाद नहीं करना चाहिये ।
जो आदर सम्मानका भाजन और अधिकारी नहीं हो उसको राज सभा में प्रवेश नहीं कराना चाहिये ।
पूज्य पुरुषका उठ करके अभिवादन व आदर सत्कार करना चाहिये ।
देव गुरु और धर्म संबंधी कार्योंको किसीके भरोसे पर न छोड़कर अपने हाथोंसे करना चाहिये ।
किसी प्राणीको कष्ट पहुंचाकर या वध करके काम क्रीडा न करे |
पर स्त्री माता भी क्यों न हो उसके साथ में एकान्त स्थानमें निवास नहीं करना चाहिये ।
क्रोधका बड़ा भारी कारण उपस्थित होनेपर भी माननीय पुरुषका उल्लंघन व तिरस्कार नहीं करना चाहिये ।
जबतक किसी आत्मीय विश्वस्त पुरुषके द्वारा शत्रु स्थानकी परीक्षा ( जांच ) न करा ली जावे तबतक उस स्थान में प्रवेश न करे । अनजानी सवारी (घोड़ा आदि) पर न बैठे जबतक किसी तीर्थ स्थान व संघ (मात ) के
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[ वर्ष १७
बारे में आत्मीय पुरुषोंके द्वारा परीक्षा (जांच) न करा ली जावे तबतक उस तीर्थस्थान व संघमें प्रवेश नहीं करे |
असंभ्रान्त नीतिज्ञोंने जिस मार्गपर चलने का उपदेश दिया है उसी मार्गपर चलना चाहिये ।
विषको नाश करनेवाली औषधियों और मणियोंको हमेशा धारण करना चाहिये । आचार्य वाग्मटने भी लिखा है 'धारयेत्सततं रत्न सिद्ध मंत्र महौषधी : ' उत्तम शुभ मणियों सिद्ध मंत्रों और महौषधियोंको हमेशा धारण करना चाहिये ।
हमेशा अपने पास रखना चाहिये । सलाहकार, चिकित्सक और ज्योतिषियों को
भोग्य ( अन्नादि ) उपभोग्य ( वस्त्रादि ) वस्तुएँ सविष हैं अथवा निर्विष इस बात की वाले पुरुषोंके नेत्रोंकी चेष्टा, वार्तालाप, शरीरकी Perfar और इनको बनानेवाले, देनेवाले व रखनेचेष्टा, मुखकी विकृति और प्रश्न आदिसे परीक्षा करे | आचार्य वाग्भटने भी लिखा है— विपदः श्याव शुश्कास्यो
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स्वेदवेपथुमांखस्तो भीतः स्खलति जृंभते || १२|| विलक्षो वीक्षते दिशः ।
अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अ० ७ विषको भोजन आदिमें मिलाकर खिलानेवाले पुरुषका मुख सुख जाता है और काला पड़ जाता है, लज्जित होकर चारों तरफ देखता है कि मेरे दोषको कोई समझ तो नहीं गया ऐसी शंकासे शरीर में पसीना और कपकपी आजाती है, उद्विग्न चित्त और भयभीत होता है, चलते
समय पद पदपर लड़खड़ाता है और भकारण जमाई लेता है ।