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________________ लक्षण हैं। अंक ७] दिगम्बर जैन । अमृत वायु :( वायें नथनेकी श्वास,-वाम विषयी पुरुषको हमेशा बानीकरण ( पौष्टिक स्वर ) के बहनेपर ही हमेशा कार्योंको करो। वीर्यवर्धक ) द्रव्यों का सेवन करते रहना दाहिने नथनेसे जब श्वाप्त आवे तभी भोजन, चाहिये । मैथुन, और युद्ध करनेकी इच्छा करे। जिनमें बल पौरुष कम हैं परन्तु विषयी जो दूसरोंको अपने समान बनाता है अथवा अधिक हैं अतएव विषय सेवनसे उत्पन्न हुए अपने समान समझता है वह न किसीका वैरी रोग जिनका पीछा नहीं छोड़ते हैं ऐसे पुरुषोंक होता है और न कोई उससे द्वेष करता है। शरीरकी क्षयसे रक्षा करने के लिये ही बाजीक मनकी प्रसन्नता, परवार की अनुकूलता, शुभ रण चिकित्सा कही जाती है । शकुन, अनुकूल और शुभ वायुका वहना ये ठौकरी ( बहुत कालसे व्यानी हुई ) गायके भागामी होनेवाली कार्यकी सिद्धिके सूचक है, दृधमें बनाई गई उड़दकी खीर सबसे श्रेष्ट बाजीकरण योग है । जो स्त्री कामिनी नहीं हो भयानक जंगल व पहाड़ों में अकेले नहीं उससे संभोग नहीं करे। घूमे । मन वचन और कायको अपने वशमें । ____समान-समायोग ( बराबरीका सम्बन्ध ) से स्वखे । आकाशमें चंद्र आदि नक्षत्रों के दिखनेसे पहिले संध्योपासना करे । बढ़कर दूसरा कोई श्रेष्ठ उपाय स्त्री पुरुषोंको जहांतक होसके दिनमें संभोग नहीं करे वशमें करनेका नहीं है । यदि इन्द्रियोंके परवश होने आदिके कारण ___समान प्रकृति, समान उपदेश और काम दिनमें चक्रवाककी तरह संभोग करे तो रात्रिमें क्रीड़ामें एकप्ती स्वाभाविक चतुरता ये तीनों स्निग्ध दुध आदि पदार्थो का सेवन अवश्य करे । ही समान समायोग होनेमें कारण हैं। चकोरकी तरह रात्रि में संभोग करने की इच्छा निसको पाखाने का वेग आया है, भूखा करनेवाला पुरुष दिनमें स्निग्ध पदार्थों का सेवन प्यासा हो व मिसकी आखें दुखने आई हैं, ऐसे पुरुषों को विषय संभोग नहीं करना अवश्य करे। कबूतरकी तरह अहर्निश विषय सेवन करनेवाले र चाहिये । यदि ऐसी दशामें विषय संभोग पुरुषको उचित है कि वह हमेशा बानीकरण ___ करेगा तो शरीरके जीवनभूत ओनका नाश वृष्ययोगोंका सेवन अवश्य करे। आचार्य होगा। प्रथम तो इन रोगियों के दृषित वीर्यसे गर्मावाग्मटने भी लिखा है-- धान होना ही असंभव है यदि कदाचित गर्भ वानीकरणमन्तिच्छेत्सततं विषयी पुमान् । ...n भी रह नाय तो उत्पन्न हुमा बालक, अत्यन्त अल्प सत्वस्यतु क्लेश वाध्यमानस्य रागिणः॥ पारीरक्षय रक्षार्थ वाजीकरणमुच्यते ॥ ५॥ दुर्बक, अल्पायु, माताके उन २ रोगोंवाला, अष्टांग इ० उत्ता तंत्र अ० ।। और सदा रोगी होगा।
SR No.543197
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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