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________________ VALOR SIL गतिथि 7O/ दिगम्बर जैन वर्ष १७ तीनों संध्याओं में, दिनमें, जलमें और देवा- NNANJAVAJNANA NA NANNAR लयमें मैथुन नहीं करे। हमारा काम प्रत्येक पर्वमें, पर्वकी संधिमें और भीगन ( घटे हुए दिन ) में कुलीन स्त्रीके साथ AGRIRIKNIKARNATARI संभोग नहीं करे। (१) जिस स्त्रीके साथ पाणिग्रहण हआ है उसी हमारा केला है यह . काम । स्त्रीके साथ संभोग करे उससे भिन्न दसरी कि जासे होता है बदनाम ॥ स्त्रियोंपर निगाह भी नहीं डाले। किन्तु हम कुछ भी सोचें नहीं। जो कुल, विद्या, धन, उम्र और आम्नायके दुर्गणोंसे दिल मोचें नहीं॥ अनुरूप भेष व आचार विचार नहीं रखता है ऐसे किस पुरुषकी हंसी नहीं होती अर्थात् सुना है हमने ऐसा ब्यान । होती ही है। सताना नहीं पराई जान ॥ द्वारपाल ( पहिरेदारो ) को उचित है कि, किन्तु देते न इस पर ध्यान । जबतक किसी चीज़की परीक्षा और परिशोध दुखावें सदा पराये प्रान ॥ नहीं कर लेवे तबतक किसी चीजको व पुरुषको न राजगृहके भीतर जानेदेवे और न बाहिर यदि अब आप बताते हैं । भानेदेवे। कि हम जैनी कहलाते हैं । ऐसी ऐतिहासिक घटनायें प्रसिद्ध हैं कि और- : २. अहिंसा धर्म हमारा है । तके भेषको धारण करनेवाले कुन्तल देशके महा __ भो सब जीवों को प्यारा है ॥ राजाके गुप्तचरने कानके पासमें गुप्तरूपसे छिपायी हुई तलवारसे पल्लवक रानाको और हयपतिने में ढेके सींगमें भरे हुए विषके द्वारा दया ही धर्म हमारा है। कुशस्थलेश्वरको मार डाला था । दया ही कर्म हमाग है ॥ - हरएक स्थानमें अविश्वास नहीं करना चाहिये दयाके खातिर देखो हम । क्योंकि ऐसा करनेसे किसी जगह भी कोई छान पय पीते देखो हम ॥ काम सिद्ध नहीं होसकता। रात्रि भोजन नहिं करते हैं । पवित्र काश्मरी केशर न पर प्राणों को हरते हैं । का भाव ३) फी तोला है। आप क्यों यह बतलाते हैं। मैनेजर-दि० जैन पुस्तकालय-सूरत। कि परके प्राण सताते हैं ।
SR No.543197
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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