Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 12
________________ विद्यारत्न प्रथमो महानिधी धिकारः१ काग मालाकी लकडी का होमकरे. मधु, सरसव, लुण, गुह्योदेवदारु, मरी, सिंदुर भैसागुग्गुल आदि सर्वका हवन करे. तो शत्रुका पराजय होवे या शत्रुका मरण होवे. विद्याप्रवाद पूर्वस्य, तृतीय प्राभृतादयम् । उद्धृतःकर्मघाताय, श्रीवैरखामिसूरिभिः॥८॥ भाषा-दशमाविद्याप्रवाद पूर्वके तीसरे प्राभृतसे वज्रस्वामि महाराजने कर्ममलका नाश करनेके लिये इस मंत्रका उद्धार किया है. । नासाग्रे प्रणवं शुन्य-मनाहत मितित्रयम् । ध्यायन् गुणाष्टकं लब्धा, ज्ञान माप्नोति निर्मलम् ॥ ९॥ | भाषा-नाशिकाके अग्रभागमे प्रणव-ॐ शुन्य-ह, अनाहत-अ [ ॐ ह अ] इन तीन अक्षरका ध्यान आठ गुणको प्राप्त कराताहै और निर्मल ज्ञानको प्राप्त कराताहै. शङ्खकुन्दशशाङ्काभं, स्त्रीनमून् ध्यायत सदा । समग्र विषय ज्ञान-प्रागल्भ्यं जायते सदा ॥ १०॥ भाषा-शंख, मोगरेका पुष्प तथा चंद्रमाके समान उज्वल ध्यान, जो हरवखत करताहै वह सर्व विषयके ज्ञानकी प्रागल्भ्यताको प्राप्त होता है. द्विपार्श्वप्रणवंद्वन्द, प्रान्तयो मायया वृतम् । सोहंमध्ये विमुर्धानं, अस्ड्रीकारं विचिन्तयेत् ॥ ११ ॥ भाषा-इसश्लोक [ही ॐ ॐ ही अह्री हंस ] यह मंत्र है. इसका हरहमेश ध्यान करना चाहिये. Jain Education Thera For Personal Private Use Only mwww.painelibrary.org

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