Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ भाषा-प्रणव-ॐ, माया--ही, कमला-श्री, मंत्रोद्धारः-ॐ ही श्री-कलिकुंडस्वामिने वशं आनय आनयस्वाहा द्वितीयोऽ विद्यारलाईसमंत्रको पार्श्वनाथप्रभुके आगे चमेलीके ताजेफुलोंसे १०००० तीनरात्रिमें साधन करनेसे हरकोई पुरुष धिकारः२ वशमें होजाता है. महानिधी _प्रणवं कामवीजंच, मायावीजं तथैवच । अधोरेफ्युतंशून्यं, वाग्वीजेन प्रसंयुतम् ॥ ४ ॥ मायावाग्भव वीजेन, सहितामाययापुनः । शून्यं रेफेन संयुक्तं, सपासंसविसर्गकम् ॥ ५॥ भाषा-प्रणव-ॐ, कामबीज-क्ली, माया-ही, अधोरेफयुतंशून्य-निचेकोरेफकेसाथशुन्य-ह यानि व्ह, वाग्वीजन-5 K ऐकारके, संयुतम्-साथ यानि है, माया-म्ही, वाग्मववीजेन-ऐ*, माया-ही शुन्य-ह, रेफेनसंयुक्त-रेफसहित, सपासंसविसर्गक-पासमेविसर्ग () न्हः मंत्राद्धार-ॐ क्ली ही है ही ऐं ही हः अपराजितायैनमः ॥ श्रीअपराजितदेव्या, मंत्रोयमपराजितः । लक्षत्रितयजापेन, सिद्धिं याति सुनिश्चितम् ॥ ६॥ भाषा-श्री अपराजितदेवीका अपराजित मंत्र है, तीन लक्ष चमेलीके ताजे फुलोंसे जाप करनेसे निश्चय सिद्ध होता है| पिंडाकृष्टिं फलाकृष्टिं, द्रव्याकृष्टिं च कामितां । वस्त्राद्याकर्षणंसवं, कुरुते नात्र संशयः ॥७॥ भाषा-यहमंत्र पिंड आकर्षण, फलपुष्प आकर्षण, द्रव्य धनादि आकर्षण, कपडेका आकर्षण तथा इच्छित वस्तुका आकर्षण करताहै ईसमें संदेह नहि. For Personal & P e Use Only sinelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50