Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 23
________________ विद्यारत्नमहानिधी Jain Educatice おおお भाषा--उपरनीचे रेफ लगाकर हकारको छट्ठास्वर ऊकार लगाना नादबिन्दु कलाक्रांत करके साध्यनाममध्यमे देकर उसके बाहर कमलके आठ पत्र करना उसमें पार्श्वनाथायस्वाहा लिखना उसके बाहर कमलके सोलहपत्र करके उसमें १६ सोलहवर भरें उसके बाहर हरहर ऐसा शब्द भरें उसके बाहरके वलयमें कसे लेकर क्षपर्यंतके अक्षर भरें फीर मायावीज ही कारसे तीन रेखा वेष्टित करके रेखांतमें कौकार देकर चक्र बनावें यह चक्र भुर्यपत्र में अष्टगंध से चमेली के कलमसे शुभदिन तथा शुभनक्षत्र में लिखें फीर कुमारी कन्याके हातसे काते हुये सुतसे हाथमे बाधना. यह चक्र सर्व संपत्तिकारक, तथा सौभाग्य और अनेक प्रकारके सुखोंका दाता है. प्रणवं माययोपेतं, कमलाकृतसन्निधिम् । मायायुक्तं पुनर्नाम, गर्भितं कमलोदरे ॥ ४३ ॥ बहिरष्टदलाक्रान्तं, मायावीजंसमन्वितम् । बहिप्रणवहीकार - पार्श्वनाथाय ही नमः ॥ ४४ ॥ लिखित्वापूजयेद्भूर्ये, सुगंधद्रव्ययोगतः । कन्पासूत्रेणसंवेष्टय, धारणीयंकरादिषु ॥ ४५ ॥ भूतादिदोषविद्रावं, योषितां गर्भसंभवम् । सौभाग्यादि गुणाश्चैवं, यंत्रमेतत्करोत्यहो ॥ ४६ ॥ | भाषा — कमलकेमध्य भागमें प्रणव- ॐ, माया -हीँ, कमला श्री, माया -हीँ ये अक्षरलिखें (उहीँ श्री -हीँ ) -हीँ कारके उदरमें नामलिखकर । बाहर अष्टकमलदलमें मायाबीज-हीँ अक्षररखें प्रत्येक पान पत्रमें कमलपत्र में मायाबीज लिखें फिर उसके बाहर ॐ नहीं पार्श्वनाथायन्ही नमः यह मंत्रलिखे. यहमंत्र भोजपत्रपर अष्टगंधसे चमेलीके कलमसे For Personal & Private Use Only 东领东所孢米孡我碰在 द्वितीयोऽ धिकारः २ १५ ainelibrary.org

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