Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri,
Publisher: Mahavir Granthmala
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विद्यारलमहानिधी
KIYAKHREEKRINAKENARAN
आदि करना चाहिये.
पंयोऽ दक्षो जितेन्द्रिय धीमान् , कोपानलजलोपमः । सत्यवादी विलोभश्च, मायामदविवर्जितः ॥ १३ ॥ मानत्यागी दयायुक्तः, परनारी सहोदरः । जिनेन्द्रगुरुभक्तश्च, मंत्रग्राही भवेन्नरः ॥१४॥
धिकारः४ भाषा-हुशियार, जितेंद्रिय, बुद्धिमान, क्रोधरहित, सत्यवादी, निर्लोभी, मायामद रहित, मानत्यागी, दयावाला, परनारी सहोदर, जिनेंद्रभक्त, गुरुभक्त इतने गुणोवाला मनुष्य मंत्रग्रहण करनेवाला होसकता है.
शुभेलग्ने शुभेवारे, तिथिनक्षत्र चन्द्रके । मंत्रदानं विघातव्यं, गुरुपूजापुरस्सरम् ॥१५॥
दीपोत्सवे व्यतिपाते, चंन्द्रसुर्योपरागयोः । विशेषेन विधातव्यं । मंत्रदानं यथाविधि ॥१६॥ भाषा-शुभलग्न, शुभवार, शुभतिथि, शुभनक्षत्र. तथा शुभचंद्र इत्यादि वेलामें मोटी पूजा पढाकर शिष्यको मंत्र देना, विशेष करके दीपमाला, व्यतिपात, सुर्यचंद्रके ग्रहणमे यथाविधि मंत्रदेना.
श्रुतसागरमालोक्य, महारत्न समामया। एते मंत्रा समाख्याता, योग्यानां हितकाम्पया ॥१७॥
परीक्षितगुणानां तु, भक्तियुक्तशरीरिणाम् । श्रद्धावंतां प्रदातव्या, सुखमिच्छद्भिरात्मनः ॥१८॥ भाषा-योग्य जीवोंके हितके लिये आगमसमुद्रका अवगाहन करके महारत्न तुल्य इनमंत्रोका कथन किया है. इसे में अपने आत्मकल्याणकी इच्छारस्वनेवाले गुरुने, जिसके गुणोंकि परीक्षा कीहऐसे भक्तियाले श्रद्धावाले शिष्यको मंत्र देना.
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