Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
anicalcohtastootooaiba
"श्रीमहाबीर ग्रंथमाला तृतीय पुष्पम् ३ * दशपूर्वधर भगवानश्रीभद्रगुप्ताचार्यविरचिता * विद्यारत्न महानिधिः
प्रकाशकः-श्रीमहावीर ग्रंथमालाके मानदमंत्री
S. K. Kotecha मुद्रकः-रामचंद्र गोविंद पावसकर, मालक श्रीराम प्रिंटिंग प्रेस धुळे.
सर्वधिकारा खाधिनाः बीरसंवत २४६२
म . मुल्यं २५ २५ पंचविंशतिः ।
पंशविंशतिः रूप्यकः
human
Jain Education Inderational
For Personal Private Use Only
www.ininelibrary.org
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
#EEEEEEEEEEEEEEEEee
* जैन समाजमें अपूर्व क्रान्ति
श्रीमहावीर जैन ग्रंथमालाकेपुस्तकें प्रकाशित होगये. पढिये अवश्य पढिये और मनन करिये. ज्ञात होकि श्रीमहावीरग्रंथमालाके मुख्यतया दो विभाग करनम आये हैं. जिसके प्रथम विभागमें आजतक अप्रकाशित अध्यात्मग्रंथोंका और सूत्रग्रंथोंका प्रकाशन दूसरे विभाग में श्रीगणधर महाराज पूर्वघर और पूर्वाचार्योंके अनूभूत सिद्ध हैमकल्प, औषधिकल्प, मंत्रकल्प, आदि ग्रंथोंका प्रकाशन करवाना सुनिश्चित किया है. स्वाध्याय प्रेमी कोई भी महानुभाव अगर इसग्रंथमालाकेग्राहक बनना चाहेतो नियमित फीसके पांच रुपये भरकर ग्राहक श्रेणी में अपना नाम लिखवा सकते है. अभीतक इसग्रंथमालाके अनकरीब पचास महानुभाव स्थायीरूपसे ग्राहक हो चुके है. इसग्रंथकी इस सूचनाके अतिरिक्त और कोई जाहिर सूचना देनेमें नहीं आयेगी. क्योंकि इसमें गुप्तविद्या होनेके कारण इसका जितना सद्उपयोग होना चाहिये संभव है कि सर्व साधारण जनताकेद्वारा उससे कहीं अधिक इसका दुरूपयोग हो इसीलिये हमने इसग्रंथकी अभी अधिकप्रतियाँन छपवाकर थोडीसी प्रतियाँ छपवाई है; बाद इनप्रतियोंके खपजानेके यदि ग्राहकोंकी अधिक संख्यामें मागे आईतो दुसरीदफेमें हम अधिक संख्यामें प्रतियाँ छपवा सकेंगे. स्वाध्याय प्रेमी सज्जन ग्रंथमालाकी ग्राहक श्रेणी में शीघ्रातिशीघ्र अपना नाम लिखवाकर यश और पुण्यके भागी बनेंगे क्या मै ऐसी उम्मीद करसकताहूं ? निवेदकमंत्री - SK Kotecha, Dhulia. ਪੇਰੋਏਰਟੋਏਟੋਏਏਏਏਏਏਏਏਏਡੇਏਡੇਏਰੋਏਟੋਏਏਡੋਡੇਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਏਡੋਏਟੋਏਏਏਏਏ
66666666668
For Personal & Private Use Only
www.jninelibrary.org
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Jain Education In
KYYYY
---: खुश खबर :
खास कामरूप देशोत्पन्न वह असली " सियालसिंगी " जिसकी तारीफ में लोग यह कहा करते हैं की- " सियालसिंगी श्वेतवाजा क्या करेगा रूठा राजा " जिसको हमने गहरे श्रमके साथ प्राप्त की है, इसको विधिपूर्वक मंत्रसे मंत्रित करके पास रखनेवालोंकी सर्वेच्छाओंकी सिद्धि होती है तथा इसके प्रभावसे राजसभा में सन्मान, मुकदमोंमें विजय प्राप्ति, भूत पिशाचादिकों का उत्पात नष्ट ३६० मूठ अपने शरीरपर नही आती कामरूप देशके लोक मंत्रितकर जांघको चीरकर बीच में रखते है. और राजयक्ष्मादि राजरोग नष्ट हो जाते हैं. शत्रूभी वशमें होकर शरण में आ जाता हैं वशीकरणमेंभी यह सियालसिंगी अपने ढंगकी एक है. न्योछावर रु. ५ से २५ तक.
हाथाजोडी नामक एक वृक्षका फल जो देखने में साक्षात् हाथके अंगुलियोंसे वेष्टित है पारदर्शक है जिसकी किंमत प्रतिहाथ आठ आना दो हाथसे दश हाथ तकका मिलता है कमसेकम दो हाथका आता है ज्याहामें दश हाथतक जो बडेही परिश्रम से प्राप्त हुवा है बलीहारी है प्रकृतिकी जो वृक्षोमें ऐसे २ फल लगते है यह वृक्ष कामरूप देशमें होता है. एक डबी में मंत्रसे मंत्रित करके जिसके नामसे वह रखलो बस वह वश हो जायगा. दश हातका बहुत जल्दी काम करता है तरकीब सांथने भेजी जाती है. पोष्ट खर्च जुदा समझना.
उपर लिखा हुवा इस पत्ते से मिलता है.
पता:- एस. के. कोटेचा, महावीर ग्रंथमाला आग्रारोड, धुलीया. [ प. खानदेश ]
SNYMS AN
For Personal & Private Use Only
XXXKXRE
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
हा
दाष से ह
प. बीय नमः
अनमो
नप
קל
स्वाहा
नमो
सिध्दार्ण स्वाहा
What
Hele che b
और हता
चारिभाव
पफ बनम
WYRTRTN
C
स्वाहा
albusebil
नमी
त बगाय नमः
तथ
दुर्धन
邊度
कपराध ङ
क बगोय नमः
नाव
स्वाहा दशनाय
नमो
34
रो
库
ट ठ ड ढ ण
ale
तृतियाधिकारे चत्वार श्लोकस्य (४) यंत्रं पान १७
NIK
DHIK
हा
For Personal & Private Use Only
स्वा
कु
kاسي
कु
तृतियाधिकारे सप्तदश श्लोकस्य ( १७ ) यंत्र
पान १९
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
D
मः
न
ॐ गा
श्रीँ
अ
प्रथमाधिकारे पंचम लोकस्य (५) यंत्रे पान २
पुष्पी, मोतुंग महानिमित्त कुसवाणं, औनमो बिच इट्टीपल ऑनमो:
औनमो विषाण, ओं नमो ओहि निमार्ण, ऑनयो परमो हि निभाएं,
ॐ नमो ज्युमवर्ण, ऑनमो दिउल म्हणं, औनयो बस पुर्ण, औ जयो को इस
वि
For Personal & Private Use Only
फट्
000
फ्रा
अ
bc.
हा
ति
स्वा
P KE
से सम्मोहन, मो अनंतोहि निधार्थ, औनमो बुध्दी,
र, नमी-चापभाग, ओं नमो पानं
नमो आगा गांधी,
मुं
प्रथमाधिकारे चतुर्दश लोकस्य (१४) यंत्र पान ६
0000
CIOC
www.jninelibrary.org
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
पफम म
ठा
स
श्री
34
हर
(अ)
हा
हर
Jo
हर
ar
देवदन
था/
हर
थ
ना
गहु
ये उ
'ऊ'
हर
हर
ए
ट ठ ड ढ ण
झीँ
द्वितीयाधिकारे चत्वारिंशत् सोकस्य (४०) यंत्र
पान १४
30 For Personal & Private Use Only
मः
2010
ং, এএবং এবং
Raj
डी
77
था
ना
द्वितीयाधिकारे चचत्वारिंशत् ४४ यंत्र पान १५
पा
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
ISHSISIDIISCONCURUSDICCHIBICICISI
पुगोसन महानिमित कुमार, ऑनले विबगीचा, ओमनी
ओं जो शिणाण, नमो ओदि निमार्ण, ऑनले घरमोहिमाण,
ने मेहम
ION
D0%B0D0
जगमोहमदन, ऑगमो विएल म्हण, औ नमो बस पुरवीणों
ओंगो भयो जा, inहि लिन, औनमेdhi माहरण, जनमे-यायभागी, ओं जो पहलमाग, नम simanrh,
DIIG BIDIICC
usergesrayanaSangeeys 'vessyegs
____eam aswagatgurce प्रथमाधिकारे पंचम श्लोकस्य (५) यंत्रं पान २
प्रथमाधिकारे चतुर्दश श्लोकस्य (१४ ) यंत्रं पान ६ CONCISIONSCI DISCEDUCIISCUSSIONS
For Personal & Private Use Only
www.indibayar
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
OCCUCCIOCIMICICI
DICHICHICICONICHINO
k
लब
Fa
BUMICSIZ
WUCHSICHEDUC
झ
बमम
टठ
ढण
द्वितीयाधिकारे चत्वारिंशत् श्लोकस्य (४० ) यंत्रं
पान १४ । द्वितीयाधिकारे चतुचत्वारिंशत् श्लोकस्य (४४) यंत्रं पान१५
iceDCNCNCOISDICCISI ISICUCIVIC ICNDDNS. For Personal Private Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न महानिधी
びび
अहँ
श्रीदशपूर्वधरभद्रागुप्ताचार्यविरचिता श्रीविद्यारत्नमहानिधि मंत्रद्वात्रिशिंकाकल्पः
प्रणम्य श्री महावीरं । विद्यारत्नमहानिधिम् || मंत्रद्वात्रिंशिकां वक्ष्ये । सर्वकार्यप्रसाधिकाम् ॥ १ ॥ भाषा - भगवान श्री महावीर प्रभुको नमस्कार करके दशपुर्वधर भगवान श्रीभद्रगुप्ताचार्य सर्वकार्यको सिद्धकरनेवाली श्री विद्यारत्नमहानिधि नामकी अनुभुत मंत्र द्वात्रिंशिका कल्प फरमाते है.
स्तम्भनंमोहमुच्चाटं, वश्याकर्षणज़म्भनम् । विद्वेषणं मारणंच, शान्तिकं पौष्टिकं तथा ॥ २ ॥
मुक्तिमार्गंच शास्त्रेऽत्र, भणिष्यामियथाविधिम् । एकाग्रीभूय भो भव्याः, श्रूयतां भक्तिपूर्वकम ॥ ३ ॥ भाषा - इस शास्त्र में स्तंभन, मोह उच्चाटन, वश्य, आकर्षण, जंभन, विद्वेषण, मारण, शांतिक, पौष्टिक, मुक्तिमार्ग इतनी वस्तुका विधिपुर्वक कथन करूंगा, भोभव्यजीवो भक्तिपुर्वक एकाग्रमनसे सुनो.
सर्वज्ञाभं महामंत्रं, सर्वकल्याणकारकम् । सर्वकर्मकरं चैव, साधयेच्च यथाविधिम् ॥ ४ ॥ भाषा - सर्वज्ञकेसमान सर्व कल्याणकरनेवाले, सर्व कर्मको करनेवाले इस महामंत्रकी साधना यथाविधि करनी चाहिये.
Jain Educational
For Personal & Private Use Only
प्रथमो
धिकारः १
१
inelibrary.org
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमो
|धिकारः१
ब्रह्म-त्रिलोक-कमला, अकारो नभसोक्षरम् । रेफविन्दुकलाक्रान्तं, नमश्च मंत्रमुच्यते ॥ ५॥ विद्यारत्न
भाषा-ब्रह्म-ॐ त्रिलोक-ही, कमला-श्री, अकार-अ, नमसोक्षरम्-ह, रेफविन्दुकलाक्रांत-ह मंत्रोद्धारः ॐ ही महानिधी
श्री अर्हनमः-यह सर्वज्ञसदृश मंत्र है.
पीतं स्तम्भेऽरुणं वश्य, क्षोभने विद्रमप्रभम् । कृष्णं विद्वेषणे ध्याये-त्कर्म घाते शशिप्रभम् ॥६॥ Re भाषा-स्तंभन करने में पीत ध्यान, वशिकरणमें रक्त ध्यान, क्षोभन करने में प्रवालसदृश ध्यान, विद्वेषणमें कृष्ण
ध्यान, कर्मनिर्जरामें चन्द्रमाके सदृश ध्यान करना चाहिए. । द्वादशसहस्त्रजापे, दशांशहोमेन सिद्धिमुपयाति । मंत्रो गुरुप्रसादात्, ज्ञातव्य स्त्रिभूवने सारः॥७॥ |
भाषा-बाराहजार जाप करके उसका दशांश आहूति देकर गुरुमहाराजकी कृपासे मंत्र सिद्ध होताहै जो त्रिभुवनमे * सार रूप है.
(प्रथम चंद्रबल तथा ग्रहबल देखके फिर सुनक्षत्र (रवि पुष्ययोग, सिद्धियोग, अमृतसिद्धियोग, नवरात्रि ke आदि) में कार्य परत्वे यथा दिशामें शुद्ध भुमिमें सवागज प्रमाण भुमि खोदे अशुद्ध वस्तु (हाड रोमवगैरा) कीनिवृति # करे पिछे मट्टीको शुद्ध जलसे लिंपन करके प्रतिष्ठा करावे. चार दिशा गज प्रमाण सार्धहस्त अधोमुख, दीप, धुप, पुष्प * कुंकुमका छाटादेना, कुंड षट्कोन बनाना, पीछे खदिरांगारसे कुंड भरे, अखंड धुप दीप पुर्ण कलशकी स्थापना करे,
कुमारीकन्याके पास हिरवनकी कपासीका सुत कताकर २१ सरकाडोरेकी अष्टगंधसे पुजा करके फिर बत्ती बनावे.
Jain Education
For Personal Private Use Only
melibrary.org
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न महानिधी
RRR
Jain Education Y
दीपेंकम सवासेर घृत भरकर चकमकसे ज्योति प्रगटावे. एक उत्तर साधकको साध लेकर बैठे, पुर्ण ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे. देव तथा गुरु प्रति भक्तिरखे, उत्तर साधकको असन, पान, वस्त्र, आभरण इत्यादिसे भक्ति पुर्वक सन्मान करें प्रत्याख्यान, अष्टम, आचामाम्ल वा एकासन दुध चावलसे ७१११ तथा २१ दिनकरे. सर्वथा मौन रहे. सवालक्ष [१२५००० ] जापकरे दशांश आहूती देवे. पद्मासनमें बैठके जाप करे वहांपर स्त्री बाल वृद्ध ईत्यादि प्रवेश न करे स्त्री मुख न देखे देह वस्त्र इत्यादि शुद्ध रखें, दधि, दुग्ध, शर्करा, घृत, मधु, अखरोट, बदाम, पिस्ता, निमजा, चिरोंजी, खारक, सिंघोडा, श्रीफल, खीरनी, द्राक्ष, इक्षुखंडा, और, कर्पुर, कस्तुरी, अंबर, लोवान, गुगल, श्रेत, रक्त, चंदन, पीतपट्टकुल, जब, प्रियुंग, गोरोचन वरुणकाष्ट, मलियागिरी चंदन, कालंबरी, पुष्पः - कमल, मोगरा, चंपा केवडा, केतकी, मोलसरी, सेवंती, जासवंद, [ जासुद ] मखा, नागरवेलीपत्र, अशोकपत्र, पत्रशटम्, सर्वजातिके फुल इत्यादि सामग्रीसे यंत्रराजकी पुजाकरे आहूती देवे.
उत्तर दिशा सन्मुख जापकरे, आसन, वस्त्र, माला वगैरे पीतलेवे पीतपुष्पसे जापकरे, पीतनैवेद्य लेवे तथा पीतध्यान करनेसे लक्ष्मी प्राप्त होती है.
पुर्वदिशा सन्मुखजापकरे सर्वसामग्री श्वेतलेवे ध्यानश्वेत करे, तो सद्गति, वंशवृद्धि, प्रजावश्य, सर्व जन वश होवे. ' / पश्चिम दिशा सन्मुख जापकरे सर्व सामग्री लाललेवे रक्तध्यान करनेसे उपद्रव टलताहै ओर जगत वशहोता है. दक्षिण दिशा जापकरे तो सर्व सामग्री कृष्णलेवे क्रुरध्यान करे, तथा कृष्ण धतुरेकाफुल, अर्कफुल कालाकरके खल, तिल, कपासकी आहुतिदेवे. अरीठा या बेहडाकी लकडी, स्मशानमृत्तिका वरुणछाल, चउवटाकिधुली, घूक
For Personal & Private Use Only
प्रथमो
धिकारः १
jainelibrary.org
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
प्रथमो
महानिधी
धिकारः१
काग मालाकी लकडी का होमकरे. मधु, सरसव, लुण, गुह्योदेवदारु, मरी, सिंदुर भैसागुग्गुल आदि सर्वका हवन करे. तो शत्रुका पराजय होवे या शत्रुका मरण होवे.
विद्याप्रवाद पूर्वस्य, तृतीय प्राभृतादयम् । उद्धृतःकर्मघाताय, श्रीवैरखामिसूरिभिः॥८॥ भाषा-दशमाविद्याप्रवाद पूर्वके तीसरे प्राभृतसे वज्रस्वामि महाराजने कर्ममलका नाश करनेके लिये इस मंत्रका उद्धार किया है.
। नासाग्रे प्रणवं शुन्य-मनाहत मितित्रयम् । ध्यायन् गुणाष्टकं लब्धा, ज्ञान माप्नोति निर्मलम् ॥ ९॥ | भाषा-नाशिकाके अग्रभागमे प्रणव-ॐ शुन्य-ह, अनाहत-अ [ ॐ ह अ] इन तीन अक्षरका ध्यान आठ गुणको प्राप्त कराताहै और निर्मल ज्ञानको प्राप्त कराताहै.
शङ्खकुन्दशशाङ्काभं, स्त्रीनमून् ध्यायत सदा । समग्र विषय ज्ञान-प्रागल्भ्यं जायते सदा ॥ १०॥ भाषा-शंख, मोगरेका पुष्प तथा चंद्रमाके समान उज्वल ध्यान, जो हरवखत करताहै वह सर्व विषयके ज्ञानकी प्रागल्भ्यताको प्राप्त होता है.
द्विपार्श्वप्रणवंद्वन्द, प्रान्तयो मायया वृतम् । सोहंमध्ये विमुर्धानं, अस्ड्रीकारं विचिन्तयेत् ॥ ११ ॥ भाषा-इसश्लोक [ही ॐ ॐ ही अह्री हंस ] यह मंत्र है. इसका हरहमेश ध्यान करना चाहिये.
Jain Education Thera
For Personal Private Use Only
mwww.painelibrary.org
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमो
धिकारः१
कामधेनु मिवाचिन्त्य, फलं सपादनक्षमम् । अनवद्यां जपेद्विद्यां, गणभृद्वदनोद्गताम् ॥ १२ ॥ विद्यारल
भाषा-गणधरमहाराजके मुखसे निकलेहुये कामधेनुके समान अचिन्त फलदेनेवाली,पापरहित विद्याका जप करना चाहिये. महानिधी
|मंत्रोद्धार मंत्रः-ॐ जोग्गे मग्गे तथ्थे भुएभव्वे भविस्से अन्ते पख्वे जिणपार्श्वेखाहा
षट्कोणेअप्रतिचक्रे, फडिति प्रत्येकमक्षरम् । सव्येन्यसेद्विचक्राय, स्वाहा वाद्येऽपसव्यतः ॥ १३ ॥
भुतान्तं विन्दुसंयुक्तं, तन्मध्ये न्यस्यचिन्तयेत् । नमोजिणाण मित्याद्यैः, ॐ पूर्वेष्टयेद्वहिः ॥ १४॥ भाषा-षटकोणयंत्र बनावे उसमे “ अप्रतिचक्रेफट् ” यहमंत्र दक्षिणकीतर्फसे अनुक्रमसे भरे “ विचक्राय स्वाहा यहमंत्र अपने डावेतरफसे उतरताभरे भुतांत-हकारको विन्दु संयुक्त करके कार्णिका [मध्य ] मे स्थापन करके ॐ नमोजिणाणं इत्यादि मंत्रसे बाहर वेष्टनकरे फीर ध्यानकरे वेष्टन मंत्र ॐ नमो जिणाणं, ॐ नमो ओहिजिणाणं, ॐ नमो
परमोहिजिणाणं, ॐ नमो सव्वाहिजिणाणं, ॐ नमो अनंतोहिजिणाणं, ॐ नमो कुट्ठवुद्धीणं, ॐ नमो वीअवुद्धीणं, ॐ ॐ नमो पयानुसारीणं, ॐ नमो संभिन्नसोआणं, ॐ नमो उज्जुमईणं, ॐ नमो विउलमईणं, ॐ नमो दसपुवीणं, ॐ नमो * चोदसपुवीणं, ॐ नमो अटुंगमहानिमित्तकुसलाणं, ॐ नमो विउव्वणइविपत्ताणं, ॐ नमो विजाहराणं, ॐ नमो चारPणाणं, ॐ नमो पण्हसमणाणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ झीँ झीँ श्री ही धृतिकीर्ति सिद्धिलक्ष्मी स्वाहा. वाहरसे है चारोतर्फ वेष्टनकरे यह सिद्धचक्र हुया.
XIISEYAPARIKSHARASHREEKRISHNA
For Personal Pre
Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न महानिधी
Jain Education
AYKKKKRTY
कर्मदावहुताशस्य, प्रशान्ति नववारिदम् । गुरूपदेशाद्विज्ञाय, सिद्धचक्रं विचिन्तयेत् ॥ १५ ॥ भाषा — गुरुमहाराजके उपदेशसे जानकर कर्मरूपी दावानलके शांतिकेलिये नवीन मेघकेसमान इससिद्ध चक्रका चिन्तनकरना चाहिये ( इसचक्रको नवपद चक्र नही समझना )
चीर्णेरपि चिरं कालं, तपोभिरमलैः सदा । कथंचित् प्राप्यतेपुंभिः, महामंत्रो महागुणः ॥ १६ ॥ भाषा — चिरकालतकनिर्मल तपस्याकरनेवालेको कथंचित् महागुणवाला यह महामंत्र प्राप्त होता है. मंत्रोद्धार आसिआ उसा नमः "
अनाख्येयमसाधूनां साधुनामापियत्नतः । कथ्यमेकान्तदेशे तु, मंत्रस्यास्य स्वरूपकम् ॥ १७ ॥ भाषा - यह मंत्र असाधु पुरुषको नहि कहना, साधु पुरुषको एकांतप्रदेशमें इस मंत्र के स्वरूपको यत्नसे कहना. मूल मंत्रोपि व्याख्येयो, महागुणविवर्धनः । येन विज्ञानमात्रेण, संपदः सर्वतो मुखा ॥ १८ ॥ भाषा - महागुणको विवर्धन करनेवाला मुलमंत्रका कथन करना जिसके विज्ञानमात्रसे सर्वतो मुखी संपदा प्राप्त होती है. मंत्रोद्धार “ ॐ अर्ह असिआउसा नमः " यह नवपदका मूलमंत्र है.
त्रिभुवनस्वामिनीविद्या, त्रिभुवनस्वामितास्पदम् । विद्यांस्मरत हे धीराः, यद्यक्षयसुखेच्छवः ॥ १९ ॥
For Personal & Private Use Only
発
प्रथमो
धिकारः १
nelibrary.org
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न महानिधी
Jain Education t
***
भाषा - त्रिभुवनस्वामिनी ( मानुषोन्तरपर्वत उपर रहनेवाली सहस्रभुजाको धारण करनेवाली सूरिमंत्रके दुसरे पीठकी अधिष्ठात्री है) देवी इसमंत्रकी अधिष्ठात्री है. इस विद्याका स्मरणकरनेवाला त्रिभुवनस्वामित्वको प्राप्त करता हुवा | मोक्ष सुखको प्राप्त करता है.
लक्षैकस्यप्रजापेन, प्रसुनैः जातिसंभवैः । दशांशहोमतोयाति, सिद्धिं विद्या प्रसाधिता ॥ २० ॥ भाषा - चमेली के ताजे फुलसे एक लक्ष जापकरके दशांश होम करनेसे विद्या सिद्ध होती है.
इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिध अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां सर्वकर्मकर वर्णनोनाम प्रथमोधिकारः
अथातः संप्रवक्ष्यामि, वश्याकर्षणमुत्तमम् । येनविज्ञानमात्रेन, सुखसंपद्यतेऽद्भुतम् ॥ १ ॥ भाषा - अवमें वश्य, आकर्षणकी उत्तमसिद्धिदायक विधिको कथन करूंगा जिसके विज्ञानमात्रसे अद्भुत सुखसंपदा प्राप्त होती है.
प्रणवं माययायुक्तं, कमला युतमेवच । कलिकुंडयुतं चापि, स्वामिनेवशमानय ॥ २॥ पुनरानय स्वाहेति, मंत्रपार्श्वजिनाग्रतः । त्रिरात्रंसाधितैः पुष्पै, रयुतेनवशंवदः ॥ ३ ॥
For Personal & Private Use Only
प्रथमो
धिकारः १
Minelibrary.org
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
भाषा-प्रणव-ॐ, माया--ही, कमला-श्री, मंत्रोद्धारः-ॐ ही श्री-कलिकुंडस्वामिने वशं आनय आनयस्वाहा द्वितीयोऽ विद्यारलाईसमंत्रको पार्श्वनाथप्रभुके आगे चमेलीके ताजेफुलोंसे १०००० तीनरात्रिमें साधन करनेसे हरकोई पुरुष
धिकारः२ वशमें होजाता है. महानिधी
_प्रणवं कामवीजंच, मायावीजं तथैवच । अधोरेफ्युतंशून्यं, वाग्वीजेन प्रसंयुतम् ॥ ४ ॥
मायावाग्भव वीजेन, सहितामाययापुनः । शून्यं रेफेन संयुक्तं, सपासंसविसर्गकम् ॥ ५॥ भाषा-प्रणव-ॐ, कामबीज-क्ली, माया-ही, अधोरेफयुतंशून्य-निचेकोरेफकेसाथशुन्य-ह यानि व्ह, वाग्वीजन-5 K ऐकारके, संयुतम्-साथ यानि है, माया-म्ही, वाग्मववीजेन-ऐ*, माया-ही शुन्य-ह, रेफेनसंयुक्त-रेफसहित,
सपासंसविसर्गक-पासमेविसर्ग () न्हः मंत्राद्धार-ॐ क्ली ही है ही ऐं ही हः अपराजितायैनमः ॥ श्रीअपराजितदेव्या, मंत्रोयमपराजितः । लक्षत्रितयजापेन, सिद्धिं याति सुनिश्चितम् ॥ ६॥ भाषा-श्री अपराजितदेवीका अपराजित मंत्र है, तीन लक्ष चमेलीके ताजे फुलोंसे जाप करनेसे निश्चय सिद्ध होता है|
पिंडाकृष्टिं फलाकृष्टिं, द्रव्याकृष्टिं च कामितां । वस्त्राद्याकर्षणंसवं, कुरुते नात्र संशयः ॥७॥ भाषा-यहमंत्र पिंड आकर्षण, फलपुष्प आकर्षण, द्रव्य धनादि आकर्षण, कपडेका आकर्षण तथा इच्छित वस्तुका आकर्षण करताहै ईसमें संदेह नहि.
For Personal & P
e Use Only
sinelibrary.org
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
द्वितीयोऽ
धिकारः २
वश्या भवन्ति कामिन्यो, भ्रश्यत्परिहितांबरा । आजन्मदास्यभावंच, भजन्ते नात्र संशयः ॥ ८॥ विद्यारत्न
भाषा-रानी महारानी तथा कोई भी स्त्री कपडेके भानबगर वश होतीहै. तथा जन्मपर्यंत दास्यभावका निसंदेह महानिधी वीकार करती है.
यद्यत्कामयतेसर्वं, तत्सद्य तस्य जायते । मंत्रराजप्रसादेन, फलमस्य न संशयः ॥९॥ भाषा-मंत्रवादी जिस जिस वस्तुकी कामना करताहै वह सर्ववस्तु उसको प्राप्त होतीहै. मंत्रराजकी कृपासे * निसंदेह वात है.
प्रणवं पार्श्वनाथाय, मायावीजं तथैवच । एवं लक्षप्रजापेन, मंत्रोयं सिध्यति स्फुटम ॥ १०॥ मंत्रोद्धारः-ॐ पार्श्वनाथाय ही, यहमंत्र एक लक्ष जापकरनेसे सिद्ध होताहै. ___ नारीनां पुरुषानांच, भुपतीनां विशेषतः । आराध्यमानः यत्नेन, दशाहेन वशंकरम् ॥ ११ ॥
सहस्रमेकं यत्नेन, दशाहं प्रतिवासरम् । पदभ्रष्टो जपेद्यस्क्त, ससद्यो लभतेपदम् ॥ १२ ॥ भाषा-ईस मंत्रकी यत्नपुर्वक आराधना करनेसे पुरुष या स्त्री तथा विशेष करके राजा वश होता है, प्रतिदिन एक हजार जाप दशदिन करनेसे पदभ्रष्ट हुवा हुवा पुरुष वही पदवीको प्राप्त होता है.
बांछितानिचजंतुनां, फलान्यस्यप्रभावतः। कल्पद्रोरिवजायन्ते, नाना रूपानि नित्यशः ॥ १३ ॥
Jain Education
rational
For Personal Private Use Only
rainin.jainelibrary.org
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
महानिधी
Jain Education
SARKARYA
भाषा - इस फल देता है.
मंत्र के प्रभाव से मनवंछितवस्तु प्राप्त होती है. यहमंत्र कल्पवृक्षके समान रोज नाना रूपका
पाशं पाशयुतं शुन्यं, विषघ्नं मंगलं तथा । कल्याणं चेति मंत्रोयं, पार्श्वयक्षोभिधानतः ॥ १४ ॥ अर्थस्वयं विचार लेना.
देयोयं भक्तियुक्ताय, सुर्यचंद्रोपरागयोः । दीपोत्सवेथवा मंत्रो, रहस्सु गुरुपूजया ॥ १५ ॥ तेनापि भक्ति युक्तेन, शुद्धचित्तेन संततम् । मायामदवियुक्तेन, क्रोधलोभमदोज्झिना ॥ १६ ॥ सत्यवाक्यप्रदानेन, गुरुपादोपसर्पिना । एकभक्तोषितेनैव, ब्रह्मचर्यविधायिना ॥ १७ ॥
भाषा - शुद्ध चित्तवाला, मायामद करके रहित, क्रोधलोभ अहंकार शुन्य, सत्यवादी, गुरुसेवामें तत्पर, ब्रह्मचारी, एकभुक्त याने एकाशन करनेवाला ऐसे भक्तियुक्त शिष्यको सुर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, तथा दीपमालाके दिन एकान्त में मंत्र देना, शिष्यने गुरुकी पुजा करनी चाहिये.
सहस्त्रैकस्यजापेन, षण्माषान्प्रतिवासरम् । श्रीमत्पार्श्वजिनेन्द्रस्य, गुरुपूजापुरस्सरम् ॥ १८ ॥ ध्यातव्यंसुधियानित्यं, मंत्रोयममरार्चितः । सिद्धियाति ततः तस्य, महासत्वशिरोमणेः ॥ १९ ॥
For Personal & Private Use Only
*
द्वितीयोऽ
धिकारः २
sinelibrary.org
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न महानिधी
Jain Education
班的我抬班進班的班的班的我的班张
भाषा - बुद्धिमान पुरुषने ध्यानपुर्वक ६ मास पर्यंत प्रतिदिन एकहजार जाप करना, पार्श्वनाथ भगवानकी बडी पूजा पढ़ानी चाहिये यह मंत्र देवोसें पुजित है. महासत्वशालिको मंत्रकी सिद्धि होती है.
यस्यायंसिध्यते मंत्रो, वश्ये तस्यवसुंधरा । सद्योभवति मंर्तस्य, कर्तव्यो नात्र संशयः ॥ २० ॥ | भाषा - जिस पुरुषको यह मंत्र सिद्ध होता है पृथ्वी उसके वश होती है इसमे संशय नहीं करना चाहिये.
द्वारेतस्यगर्जन्ति, शैला तुङ्गशरीरकाः । मुहुः स्रवन्मदासार - सितोर्वीकामंतगजाः ॥ २१ ॥ हेषन्तिच हयद्वारे, वेगनिर्जित वायवः । प्रणतिं याति पादान्तं, तस्यस्फारितभक्तिकम् ॥ २२ ॥ भाषा - जिसने पृथ्विको मदसे सिंचित किया है ऐसे पर्वत सदृश मदोन्मत्त हस्ति उसके द्वारपरगर्जना करते है, उसके दरवाजे में अपनेवेगसे वायुको जितनेवाले घोडे गरजते है, जिनका भक्तिभाव विशेष स्फुरायमान हुया है ऐसे शत्रु मन्त्रवादीके पगमें नमस्कार करतें हैं.
पादपीठलुठन्मूर्ध-मुकुटकोटितटोत्कटा । पादयोः तस्य भुपालाः, गुठन्ति बहुमामिनः ॥ २३ ॥ भाषा - मंत्रवादीके पगमें करोडो मानी राजाओंके मुकुट लोटती है, यानि मानिराजाभी नमस्कार करते है.
दोषान् कोपि गृहाति, गुणान् सर्वोपि भाषते । तस्य सौभाग्ययुक्तस्य, यस्य तुष्टो जिनेश्वरः ॥ २४ ॥ भाषा - उस सौभाग्यशाळी मंत्रवादीके दोषोंको कोई ग्रहण नही करता परंतु उसके गुणोंका सब कोई कथन करते है, जिसके उपर भगवानकी कृपाहो उसका कहनाही क्या ?
For Personal & Private Use Only
***
द्वितीयोऽ
धिकारः २
११
inelibrary.org
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
Jain Educatio
ब्रह्मत्रिलोक कमला, मूलवीजं त्र्यंततः, कलिकुण्डदण्डाय ही, नमो मंत्राक्षराणिच ॥ २५ ॥ भाषा — ब्रह्म-ॐ त्रिलोक- ही कमला- श्री मंत्रोद्धारः - ॐ ही श्री कलिकुंडदंडाय ँही नम :
रवि संख्यसहस्राणि, प्रसूनैर्जातिसम्भवैः । पयपुर्णालुकामध्ये, जापं कुर्याजिनाग्रतः ॥ २६ ॥ सिद्धिं याति ततो मंत्र, पार्श्वस्यैवप्रभावतः । कामदोमोक्षदश्चैव, भक्तिभाजां शरीरिणाम ॥ २७ ॥
| भाषा - सुवर्णके कटोरे में दुध भरकर उसमें भगवानकी मूर्ति सन्मुख स्थापन करके चमेलीके ताजे फुलोंसे बारा हजार जाप करना जिससे भक्तजनोंको पार्श्वनाथ प्रभुकी कृपासे कामको और मोक्षको देनेवाले ईस महामंत्र की सिद्धि होती है. रक्षो यक्षोरगत्याघ्र - व्यालानलगरादयः । नापकर्तुमलं तेभ्यो, येचास्यशरणंगताः ॥ २८ ॥
| भाषा - जो पुरुष इसमंत्रके शरणमें जाता है उसका राक्षस, यक्ष, सर्प, वाघ, हाथि, अग्नि, जहर आदि कुछ बिगाड नहीं सकता.
वन्हिव्याधिपयोनिधि, हरिकारफणिचौरसंयुगादीनाम् । भयमखिलमस्यसंस्मृति, मात्रादपि देहिनांत्रजति ॥ २९ ॥ भाषा - मंत्रवादीको ईसमंत्रके स्मरणमात्रसे अग्नि, व्याधि, समुद्र, सिंह, हाथि, सर्प, चोर आदिका भय नाश होता है. व्यन्तरविषविषमज्वर–दुष्टग्रहशाकिनीप्रमुखदोषाः । दुरे तस्य वहन्ते, यस्यायं भवति हृदयस्थः ॥ ३० ॥
For Personal & Private Use Only
द्वितीयोऽ धिकारः १
१२
Painelibrary.org
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
महानिधी
Jain Educatio
KKKKKARNI
भाषा - यह मंत्र जिसके कंठस्थ है उसके पास व्यंन्तर - विष - विषमज्वर - दुष्टग्रह - शाकिनी - प्रमुख दोष नहि आते, दुरसेही भाग जाते है.
सद्योदासतिकर्षित—करालकरवालकर्षितः शत्रुः । श्रीपार्श्वमंत्रमुच्चै रुच्चरतां देहिनां नित्यम् ॥ ३१ ॥ भाषा - श्रीपार्श्वनाथ भगवानके इस मंत्र का उच्चारण जो करता है उसके सन्मुख करालतरवारनिकाल शत्रु खडा होजावे तो वहभी दासके सदृश होजाता है.
निन्दुविरूपवंध्या, शल्यवती दुर्भगादि दोषत्वम् । भजते न जातुजिनवर - वरमंत्रपरायणो जन्तुः ॥३२॥ भाषा - ईसमंत्रको पाठ करनेवाली स्त्रीको निन्दु ( बच्चा पैदा होनेकेबाद मरजाना ) खराब शकल, वांझ, शल्यवाली, दुर्भगादि दोष नही सताते है.
1
कीर्ति कमलारमणी, राज्यंसौभाग्यमाशुसौख्यानि । मंत्रेलब्धेप्यस्मिन्निह, जन्तोसपदिजायन्ते ॥ ३३ ॥ भाषा - इस मंत्रके प्राप्त होनेपर मनुष्यको कीर्ति, लक्ष्मी, सुंदर स्त्री, राज्य, सौभाग्य, सौख्य, यह सर्वकी प्राप्ति होती है | तममररमणीनिकरः, सरभसमभिसरतिदिव्यविश्रान्तम् । लावण्यसिन्धुगाहन - गिरिराजे यस्य चेतसो वृत्तिः ॥३४॥ | भाषा - लावण्यसमुद्र अवगाहन करनेभे मेरुपर्वत सदृश मंत्रराज जिसके चित्तमें जमा है उसे देवांगनाभी अभिसरण करती है. देदीप्यमान विश्रांतस्थान होजाती है.
For Personal & Private Use Only
RAK
द्वितीयोऽ
धिकारः २
१३.
ainelibrary.org
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
महा निधी
KYKYKXPKRXXX
येषां परमब्रह्मणि, मंत्रेस्मिन्परममानसीप्रीतिः । तेहन्तसाभिलाषं वीक्ष्यते मुक्तिकामिन्या ॥ ३५ ॥ भाषा - जिसका मन परमब्रह्मरुप मंत्रराजमें उत्कृष्ट मानसी प्रीति रखता है उसको मुक्ति स्त्री इच्छापुर्वक देखती है. वाग्भवं कामवीजंच, सान्तं षान्तेन सयुतम् । ऐ कारेणयुतं चापि, मंत्रं वश्यकरं परम् ॥ ३६ ॥ भाषा – वाग्मव ? काम-क्लीँ सान्त-ह पान्तेन स ऐ कारणयुतं ऐकारसहित (ह+स+ऐ-इसैँ )
मंत्रोद्धारः - ऐ की इस नमः यहमंत्र परमवशिकरण है.
Jain Educational
उर्धाधो रेफ संयुक्तं षष्टमस्वरभुषितम । नादविन्दुकलाक्रान्तं, साध्यनामैकगर्भितम् ॥ ३७ ॥ तद्बाह्येष्टदलंपद्म, कर्णिकाकोटिभूषितम् । तत्र चोंपार्श्वनाथाय स्वाहेति पदमुल्लिखेत् ॥ ३८ ॥ स्वराः षोडसद्बाह्ये, हरहर ततोवहिः । कादिक्षान्तपदैपश्चा, पुरयेत्सततंवहिः ॥ ३९ ॥ मायावजेन तद्वाह्ये, रेखात्रित्रय वेष्टितम् । भुर्य पत्र लिखेच्चकं, सर्वसंपत्तिकारणम् ॥ ४० ॥ कर्पुरागरु कस्तूरी, कुकुमादिसुगंधिभिः । विलेख्यं जाति लेखिन्या । शुभलग्ने शुभेदिने ॥ ४१ ॥ वेष्टयं कुमारीसूत्रेण, बाहबद्धं च देहिनाम । सौभाग्यभाग्यमुख्यानि, सौख्यानि कुरुते क्षणात् ॥ ४२ ॥
For Personal & Private Use Only
**
द्वितीयोऽ |धिकारः २
१४
ainelibrary.org
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
Jain Educatice
おおお
भाषा--उपरनीचे रेफ लगाकर हकारको छट्ठास्वर ऊकार लगाना नादबिन्दु कलाक्रांत करके साध्यनाममध्यमे देकर उसके बाहर कमलके आठ पत्र करना उसमें पार्श्वनाथायस्वाहा लिखना उसके बाहर कमलके सोलहपत्र करके उसमें १६ सोलहवर भरें उसके बाहर हरहर ऐसा शब्द भरें उसके बाहरके वलयमें कसे लेकर क्षपर्यंतके अक्षर भरें फीर मायावीज ही कारसे तीन रेखा वेष्टित करके रेखांतमें कौकार देकर चक्र बनावें यह चक्र भुर्यपत्र में अष्टगंध से चमेली के कलमसे शुभदिन तथा शुभनक्षत्र में लिखें फीर कुमारी कन्याके हातसे काते हुये सुतसे हाथमे बाधना. यह चक्र सर्व संपत्तिकारक, तथा सौभाग्य और अनेक प्रकारके सुखोंका दाता है.
प्रणवं माययोपेतं, कमलाकृतसन्निधिम् । मायायुक्तं पुनर्नाम, गर्भितं कमलोदरे ॥ ४३ ॥
बहिरष्टदलाक्रान्तं, मायावीजंसमन्वितम् । बहिप्रणवहीकार - पार्श्वनाथाय ही नमः ॥ ४४ ॥ लिखित्वापूजयेद्भूर्ये, सुगंधद्रव्ययोगतः । कन्पासूत्रेणसंवेष्टय, धारणीयंकरादिषु ॥ ४५ ॥ भूतादिदोषविद्रावं, योषितां गर्भसंभवम् । सौभाग्यादि गुणाश्चैवं, यंत्रमेतत्करोत्यहो ॥ ४६ ॥
| भाषा — कमलकेमध्य भागमें प्रणव- ॐ, माया -हीँ, कमला श्री, माया -हीँ ये अक्षरलिखें (उहीँ श्री -हीँ ) -हीँ कारके उदरमें नामलिखकर । बाहर अष्टकमलदलमें मायाबीज-हीँ अक्षररखें प्रत्येक पान पत्रमें कमलपत्र में मायाबीज
लिखें फिर उसके बाहर ॐ नहीं पार्श्वनाथायन्ही नमः यह मंत्रलिखे. यहमंत्र भोजपत्रपर अष्टगंधसे चमेलीके कलमसे
For Personal & Private Use Only
东领东所孢米孡我碰在
द्वितीयोऽ
धिकारः २
१५
ainelibrary.org
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
Jain EducatioY
| लिखकर कुमारीकन्याके हातके कातेहुये सुतसे हस्तमे बांधेतो भुतादि दोष नाश होता है. स्त्रीको संतान पैदा होवे तथा सौभाग्यादि गुण संपदा लक्ष्मी प्राप्त होवे.
प्रणवं परमंतत्वं, मायाबीज विराजितम् । परमेष्टयादि पदचैव, हीकारंच नमः पदम् ॥ ४७ ॥
1
त्रिसंध्यं विजने भूत्वा, जातिपुष्पैरथोत्तमैः । अष्टोत्तरं शतंजाप्य, -मस्या सर्वार्थसिद्धये ॥ ४८ ॥
भाषा — मंत्रोद्धारः - ॐ हीँ असिआउसा नहीँ नमः सर्व कार्यकी सिद्धिके लिये इस मंत्रको एकांतमें चमेलीके ताजे फुलोंसे त्रिकाल १०८ जापकरें सिद्धि होती है.
इत्याकृष्टिचवश्यादौ, मंत्राष्टकमुदीरितम् । श्रुताम्भोधिमबगाह्य, रत्नोच्चयमिवोज्वलम् ॥ ४९ ॥ भाषा - श्रुतांभोनिधिकी अवगाहना करके रत्नोके सदृश इस आकर्षण वश्यादि मंत्राष्टकका कथन किया है.
इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां वश्याकर्षणादिकर्मकरमंत्राष्टकवणनोनामद्वितीयोऽधिकारः
अथातः संप्रवक्ष्यामि, स्तंम्भस्तोभादिकंविधिम् । येनविज्ञानमात्रेण, जगतोऽजय्यता भवेत् ॥ १ ॥
For Personal & Private Use Only
XXXPRE
द्वितीयोऽ
धिकारः २
१६
ainelibrary.org
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
भाषा-अवमें स्तंभ स्तोभादिकविधि कथन करुंगा जिसके विज्ञानमात्रसे जगतमें मनुष्य अजय्य होता है.
तृतीयोऽ उर्धाधोरेफयुक्तस्य, कलाविन्दु युतस्यच । नामसंगर्भितस्याथो, शून्यवर्णस्यसंलिखेत् ॥ २॥
धिकारः३ परमेष्टिपंचबाह्ये, सम्यग्ज्ञानंचदर्शनम् । चारित्रं च ततः स्वाहा, अपूर्वक ततः स्वरान् ॥ ३ ॥ वर्गाष्टकं च पत्रेसु, संधौतत्वाक्षरानिच । मायाद्यमंकुशेरुद्धं, रेखात्रितयवेष्टितम् ॥ ४॥ भूमण्डल ततः कृत्वा, यथाविधिसमन्वितम् । पट्टेपटेथ भूर्जेवा, द्रव्यैश्चगुलीकादिभिः॥५॥ शराशकादिदेवाना, मपिस्तभनमुत्तमम् । भाराक्रांन्तमिदं चक्रं, कुरुते नात्र संशयः ॥ ६ ॥
एतदेव पटे भूर्जे, कपरे मृतकपटे । विलिख्यनिखनेत्प्रेत,-वने संपुटमध्यगम् ॥ ७॥ तिल तुषराजी लवणं, मिश्रीकृत्यैकविंशति दिनानि । अष्टशतमुमयकालं, जप्तं मंत्रेणसिद्धसत्केन ॥८॥ उच्चाटनविद्वेषनमारण,-गुरुमोहमुख्यकर्माणि । मनइप्सितानि जनानां, जायंते सद्गुरुप्रसादतः ॥ ९॥ भाषा-शुन्यवर्णहकारको निचेऊपर रेफलगाकार कलाबिन्दु () युक्त करनेसे (ई) अक्षर होताहै इसके बीचमें * नाम लिखना पिछे ॐकारपुर्वक पंच परमेष्टिपद सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, सहीत अंतमे खाहालगाकर लिखे
Jain Educ
For Personal Pre
Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
बाद षोडष स्वरलिखें पिछे अष्टवर्ग लिखे संधिमें तत्वाक्षर ही लिखे को ही कारवोष्टित करे रेखाके अंतमे विद्यारत्न-IX
तृतीयोऽ ौ कारलिखे पृथ्वी मंडलकरके लकडीके पट्टेमे, कपडे में अगर भूर्ज पत्रमे अष्टगंधसे लिखे इससे शकेंद्रआदिका स्तंभन १ महानिधी होता है. ईसी यंत्रको भोजपत्रमें, कपडेमें, कपरमें मतकके घडेके ठिकरेमें तथा मृतमनुष्यके कपडेमें लिखकर स्मशान |धिकारः३
भुमिमें संपुटकर गाडदेवे २१ दिनतक सवरे तथा संध्याको तिल, तुष, राई और लवण मिलाकर १०८ बार जापकरें सिद्ध होता है मंत्रसे उच्चाटन, विद्वेषण, मारण, मोहन तथा मनो वांछित कार्य सद्गुरुकी कृपासे सिद्ध होते है. __ॐउल्कामुख्यलताक्षी, विद्युजिह्वे महावले । अमुकस्य ज्वरं सद्यः, आनयानयरौद्रके ॥ १०॥
द्विर्दहः द्विःपचोंचार्य, स्वाहान्ते च ततः क्षिपेत् । एकं भक्तं ततःकृत्वा, सिध्दयेऽष्ट शतं जपेत् ॥ ११ ॥ कृष्णाष्टम्यां चतुदश्यां, चिताङ्गारसुपाददेत् । खरीमुत्रण संक्वथ्या, रलुकढुमसंपुटे ॥ १२ ॥ विलिख्येदं महामंत्र,-मेकांन्ते संपुटेक्षिपेत् । अष्टोत्तरशतं चास्य, प्रजपेत्प्रतिवासरम् ॥ १३ ॥ यन्नामलिखितंगर्भे, जप्तंचोद्यमपूर्वकम् । तस्यानये ज्वरं सद्य, सप्तास्यमपितत्क्षणात् ॥ १४ ॥
न तत् शक्रोपिसंहर्तुं, शक्नोतिज्वरमुर्छितम् । तदाक्षराली नो यावत् , क्षालिता पयसाकिल ॥ १५॥ भाषा-मंत्रोद्धारः-ॐ उल्कामुखी अलताक्षी विद्युज्जीढे महाबले रौद्रे अमुकस्य ज्वरं सद्य आनय आनय दहदह में
For Personal
Private Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
महानिधी
Jain Education Ze
पचपच स्वाहा. कृष्णचतुर्दशी अगर कृष्णाष्टमीके रोज एकासन करके धुपदीप पुरस्सर १०८ बार जपने से सिद्धि होती है. प्रयोगः - काली चौदश या अष्टमीके दिन स्मशानमें जाकर चिता बीचका कोयला लाना फिर उस कोयलेको गधीके मुत्रमें पथ्थरपर घसकर अलुककी लकडीके पट्टीमें उपरका मंत्र नामके साथलिखे, पीछे उसका (उसपट्टीका संपुटकरके काले डोरेसे लपेटकरके एकान्तमे रखे ( अथवा उसपट्टीको काले डोरेसे लपेटनेके बाद उस लकडीको मही लगाकर गोला बनावे फिर बहेडाकी लकडीकी अग्निकरके उस गोलेको तपावे. आऊलपुष्पसे १०८ जाप रोज करे इतिद्वितिय पुस्तके) काले फुलसे रोज जाप करे. जिसका नाम अंदर लिखा है उसको उद्यमपूर्वक लक्ष्य में लेकर जाप करेतो. | उसको सात दिनके अंदर ज्वरकी बाधा होती है. उस ज्वर मुच्छितको शकेन्द्रभी रोगरहित नही करसकता ओर जबतक मंत्राक्षरको दुधसे न धोया जावे तबतक ज्वर नहि उतरता.
ॐ अमृतोद्भवे देवि, वर्षयवर्षयामृतम् । इत्यादिकेन मंत्रेण, वन्हिः स्तोभोविधीयताम् ॥ १६ ॥ भाषा - मंत्रोद्धारः - ॐ देवि अमृतोद्भवे अमृतं वर्षय वर्षय खाहा अग्निस्तंभनका मंत्र है.
ॐकारं मध्यसंस्थानं, मायाबीजेन वेष्टितम् । अमुकं देवी कुरुकुल्ले, कुरु स्वाहेतिवोच्चरेत् ॥ १७ ॥ षट्कोणं यंत्रमालिख्य, मुलमंत्रेणगर्भितम् । अष्टोत्तरशतं जप्त्वा, तत: कर्मसमाचरेत्
भाषा - ॐकारको न्हीँ कारके मध्य में लिखके पटकोणके है कोन में कुरुकुल्ले स्वाहा यह मुलमंत्र लिखे. पीछे ॐ नहीँ
For Personal & Private Use Only
॥ १८ ॥
お飲み
तृतीयोऽ
धिकारः ३
ainelibrary.org
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीयोऽ धिकारः३
महानिधी
देवी कुरुकुल्ले अमुकं कुरु स्वाहा इसमंत्रका १०८ बार जाप करे तो मंत्र सिद्ध होताहै. इसमंत्रको अच्छा दिन देखकर विद्यारत्न
चंद्रबल आदिका निर्णय करके साधन करे. धुपदीप फलपुष्पनेवेद्य आदि अष्टप्रकारी पुजाका सामान सामग्रीमें समझना चाहिये.
दुष्टं कुष्टं क्षयं याति, क्षारनीरं पयायते । पुष्प मालायते व्याल, कुन्ताग्र कुसुमायते ॥ १९ ॥ नीर पुरायते वन्हिः, गरलंच सुधायते । माघमासायते ग्रीष्मो, रविःशीतकरायते ॥२०॥
नित्यैक द्वित्रिसंमुत, ज्वरो याति परिक्षयं । कंपस्वेदादिकादोषा, गच्छन्ति प्रलयं क्षणात् ॥२१॥ ___ आज्ञा मात्रेणच क्षुद्रा, वृश्चिकाद्याः तनुभुताः । दूरे व्रजन्ति विद्याया, एतस्या सुप्रभावतः ॥ २२ ॥ भाषा-इसमंत्रके प्रभावसे दुष्ट कोडकी व्याधि नाश होती है, खारा पानी मिठा होता है, सर्प फुलकी माला 3 सदृश आचरण करता है, भालेका अग्रभाग फुल सदृश होता है, सुर्य, चंद्रमाके सदृश होता है, रोजका, दोदिनका, तीनदिनका कंप खेदआदिका ज्वर नाश होताहै, क्षुद्रवृश्चिकादि जंतु हुकमसे दुर भाग जातह.
ॐउच्छिष्टपिशाचिनीदेवी, महीस्वाहेतिकथ्यते। उच्छिष्ट पिशाचिनी नाम, विद्यासर्वज्ञभाषिता॥२३॥ भाषा-मंत्रोद्धारः ॐ उच्छिष्ट पिशाचिनी देवीमहीस्वाहा. सर्वज्ञ भगवानने उच्छिष्ट पिशाचिनी विद्याकथन कियाहै. ___मृन्मयीपुत्रीकां कृत्वा, जरत्झंखरसूर्पकम् । एकान्ते स्थापयेत्तां च, पूजयेत् च यथाविधिः ॥ २४ ॥
Jain Educational
For Personal Private Use Only
anelibrary.org
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीयोऽ
विद्यारत्नमहानिधी
धिकारः३
त्रयोदश दिनान्युच्चैः, पुजानैवेद्यपूर्वकम् । उच्छिष्टोच्छिष्टवेलायां, जपेद्वारान् त्रयोदशः ॥ २५॥ डेविकायैप्रदातव्यं, नैवेद्यं प्रतिवासरम् । चतुर्दशेन्हि संप्राप्ते, मध्येकृष्णघटं क्षिपेत् ॥२६ ॥ रक्तपुष्पैश्चसंपुज्य, पुत्रिकां तां च मृन्मयीं । यावता तैलपुरेण, ऋडेत्रावप्रमाणकम् ॥२७॥
कूपे सरसि न द्यावा, प्रवाहयेत्ततो घटम् । सिद्धत्येषाततोविद्या, महासत्वैकशालिनाम् ॥ २८॥ भाषा-मट्टीकी पुतली बनाकर टुटे सुपडे में एकांतस्थानमें रखे, वहांपर धुपदीप नैवेद्य पुष्पपुर्वक यथाविधि पूजा करे. तथा वहां उपरके मंत्रके १३००० पाठकरे. १३ दिनमें हररोज पाठ तथा पुजा करे तथा १३ दिनतक उच्छिष्ट वेलामें |१३ वार मंत्र हरसमय पढे. प्रतिदिनका चढाया हुवा नैवेद्य दुमनीको देना बाद १४ वे रोज मद्दीकी पुतलिकी लाल कणेरके फुलोंसे पुजा करके काले रंगके घडेमे रखे ओर उपरसे तेल सरिसवका डाले. तेल इतना डाले कि तेलमें पुतली डुबजाय पीछे उसघडेको कुप, तलाव या नदीके पानिमें बहादेवे ऐसा करनेसे महासत्वशाली जीवको यह विद्या सिद्ध होतीहै.
यद्येकदापि पुरुषाणां, साधयतां स्खलिंतभवेत । षण्माषान्ते ततोविद्यां, पुनरेतां प्रजापयेत् ॥ २९॥ सिद्धासती च जन्तूनां, ददाति प्रतिवासरम् । द्रम्मान त्रयोदशेवैतान् , पुनरन्यस्यनोवदेत ॥३०॥
For Personal Pre
Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
तृतीयोऽ धिकारः३
भाषा-जोकभी मंत्र साधते वखत (१४ दिवसमें) स्वप्नदोष होजायतो फीर छै महिनेके अंतमे इस विद्याका साधन करे, यह विद्या सिद्ध होनेपर प्रतिदिन १३ द्रम्म (रुपिया) देतीहै, यह बात किसीको कहना नही. कहनेसे तो रूपिया मिलना बंद होजाताहै.
परमागमसंप्रोक्तं, विश्वकंपैकचेटकम् । द्रम्माष्टकं प्रदं सद्यः, साधयेत् धैर्यसंयुतः ॥३१॥ अँचल चल अचलप्रचल, विश्वकंपावयचवेला--त्रयंच ठाठ ठः स्वाहा, विश्वकंपकंपेतिच ॥ ३२॥ श्रीपर्णीपट्टकमंत्रं, लिखित्वैनं महामति । जातिपुष्पैः ततो जाप्यं, पंचायुतप्रमाणकम् ॥ ३३ ॥ तद्दशांशेन होतव्यं, त्रिमधुरेण संयुतम् । बदरमानगुटीभिः, महिसाख्यस्यचद्रुतम् ॥ ३४ ॥ कृष्णाष्टम्यां निशामध्ये, नवम्यां भास्करोदये । अष्टोत्तरशतंरक्त, पुष्पाणि प्रजपेत्ततः ॥ ३५॥ चेटकप्रतिमां कृत्वा, चितांगारेण मंडले । ह्रदये साध्य नामंच, लिखित्वाप्रजपेत्ततः ॥ ६ ॥ निधूमांगारसपूर्ण, घटमाधाय होमयेत् । तान्येव पूर्व जप्तानि, रक्तपुष्याणि शक्तिमान् ॥ ३७॥
विद्वेषोच्चाटनंसद्यः कुरुतेदेहिनामयम् । कपिलाक्षचेटको ह्येवं, जप्तपठितसिद्धिदः ॥ ३८ ॥ भाषा-विश्वकंप चेटकका मंत्र आगमके अंदर रुपिया ८, देनेवाला है धैर्यवान साधन करे मंत्रोद्धारः- ॐ चलचल
JainEducation
a l
For Personal Private Use Only
linelibrary.org
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रचलप्रचल विश्वकप विश्वकंप विश्वकंपावय ठः ठः ठः स्वाहा श्रीपीके पट्टीपर मंत्र लिखकर बुद्धिमान ताजे चमेलीके 3 विद्यारत्न
KE फुलोंसे ५०००० जाप करे त्रिमधुर [मध दुध घृत] से भैसागुग्गुलकी गोली ५००० हजारसे आहुति देवे सिद्ध होताहै. तृतीयोऽ
* काली अष्टमीकी रात्रिको नवमी सवेरको १०८ लालकणेरसे मंत्र जपे चेटकप्रतिमा [ महिकी ] बनावे उसके हृदयमें महानिधी
धिकारः३ चितांगारसे शत्रुका नाम लिखे फिर उसके आगे जाप करे निघुमांगारसे भरे घडेमें होमकरे और लाल कणेरके फुलकी आहुति देवे विद्वेषन उच्चाटन सबकार्य करताहै. उसीतरह कपिलाक्ष चेटकपठित सिद्धका पाठ समझना. ज्यादा पाठकस्वयं विचारले.
ॐ नमो भगवत्यादौ, शिवचक्रे च मालिनी । स्वाहापदं ततो देयं, मंत्रोयं लाभदो मतः ॥ ३९ ॥ भाषा-मंत्रोद्धारः- ॐ नमो भगवती शिवचक्रे मालिनी स्वाहा. यहमंत्र लाभदेनेवाला है.
श्वेतार्कस्यचमूलेन, बिम्बंपार्श्वजिनेशितुः । विधायच प्रतिष्टाप्य, मंत्रेणानेनपूजयेत् ॥ ४० ॥ यद्यद्विचिंत्यते कार्य, मनुजैरिह लौकिकम् । तत्तत्संपद्यते सद्यो, मंत्रस्यास्य प्रभावतः ॥ ४१ ॥
राजद्वारे व्यवहारे, विवादे धान्यसंग्रहे । इत्येवमादिकार्येषु, सर्वेष्वेनं विचिन्तयेत् ॥ ४२ ॥ भाषा-पुष्यनक्षत्र सप्तमी शनिवार, 'सप्तमी रविपुत्रेण, पुष्यनक्षत्रेनयुतं, या पुष्यनक्षत्र रविवार आदिमें पहले निमंत्रन देकर पूजा कर दुसरे दिन सबेरे अपनी छायाबचाकर गुरु देवका नाम लेकर सफेद अर्ककी जडलाकर उसकी
Jain Education
For Personal Private Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
"विद्यारत्न
महानिधी
Jain Education l
KKAXX
पार्श्वनाथ भगवानप्रभुकी मूर्ती बनावे, उपरके मंत्रसे प्रतिष्ठा करावे तथा उसीमंत्रसे पुजा करे पिछे जाप करे. मंत्र सिद्ध होवे. इस मंत्रकी कृपासे मनुष्य इसलोकसंबंधि कार्यका जो जो विचार करे वे सबकार्य सिद्ध होते है. तथा राजदरबारमें, व्यवहारमें, वादविवादमें, धान्यसंग्रह करन में इत्यादि कार्यों में इस मंत्र का चिन्तन करनसे विजय प्राप्त होता है. इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां स्तंभस्तोभादिकर्मकरमंत्राष्टकवर्णनोनामतृतीयोऽधिकारः
अथात संप्रवक्ष्यामि, शुभाशुभादिसुचकम् । मंत्राष्टकमिदंरम्यं, सद्यप्रत्ययकारकम्
॥ १॥
भाषा - अबमें, शीघ्रफल देनेवाला तथा स्वानुभूत शुभाशुभ सूचक यानि स्वप्नविद्या, कर्णमें भूतभविष्य वर्तमान, जाननेकी विद्या, क्षुद्रजन्तुशमनविद्या इत्यादि विद्याओंका वर्णन करूंगा.
प्रणवं मायया युक्तं, लाह्वापलक्ष्मीकान्वितम् । वायु शुन्यावसानंच, मंत्रमत्रविदो विदुः ॥ २ ॥ सहस्रदशकं जाती-पुष्पैः पूर्वं प्रजप्यतु । पश्चाद्दशांशहोमेन । सिद्धिरस्याविधीयते कार्यकालेच संप्राप्ते, विघायैकाशनंतपः । अष्टोत्तरशतं जप्त्वा, स्वपेद्भूमौ व्रतस्थितः
॥ ३ ॥
॥ ४॥
For Personal & Private Use Only
KHAYA
तृतीयोऽ धिकारः ३
२४
inelibrary.org
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
चतुर्थोऽ
महानिधी
धिकारः४
लाभालाभं भविष्यन्तम् , शुभाशुभं जयाजयम् । जीवितं मरणं चैव, सुभिक्षं क्षेममेव च॥५॥
वर्षावर्ष भयं भीति--वर्जितं सुखदासुखम् । लगित्वा कर्णयो देंवि, सर्वमाख्याति निश्चितम् ॥ ६ ॥ भाषा-मंत्रवादी कहतेहै. प्रणव-ॐ, माया-हीं, लाह्यापलक्ष्मीके साथ, वायुवीज-स्वा. शुन्य-हा मंत्रोद्धार ॐ ही लाह्वापलक्ष्मीस्वाहा इसमंत्रको चमेलीके ताजे फुलोंसे १०००० दशहजार जाप १३५ ऐसे दिनोमें करे फिर दशांश आहुति देनेसे मंत्रसिद्ध होताहै. कार्यकाले दुधचावलसे एकासन करके १०८ जापकरके मौन होकर जमीनपर शयनकरे, तो लाभालाभ, भुतभविष्य, वर्तमान, शुभाशुभ, जीवित मरण, सुभिक्ष दुर्भिक्ष, वर्षावर्ष, अभय, भिति, सुखदुःख इत्यादि सर्व देवी कर्णमे निसंदेह कह देतीहै.
ॐ ही लाह्वापलक्ष्मीच, इवाँ क्ष्वी च कुश्चहंसच।स्वाहाकारं ततोदेयं, मंत्रोयं मुनिभाषितः॥७॥ त्रयोदश सहस्राणि, जातिपूष्पैश्च पुर्वतः । जापोस्य हि विधातव्यः, महासत्वैकशालिभिः ॥८॥ तदनुत्तरसेवायां, दशांशे होमतस्तथा । मंत्रोयं साध्यतांनेयः, संयमारामगामिभिः ॥ ९ ॥ विधिः पुनरयंचात्र, मंत्रस्यास्य प्रसाधने । स्नास्वा विलिप्यसर्वांगं, सदशश्वेतवस्त्रभृत ॥ १०॥ खयंचोपोषितोभूत्वा, कन्याभोजनदायकः । कुमारीगुरुपूज्यानां, वस्त्रदान पुरस्सरम् ॥११॥
JainEducar
For Personal & Private Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थोऽ
विद्यारलमहानिधी
धिकारः४
श्रीमदम्बालिकादेव्या-बिम्ब माधायसमुवि । स्नानपूजादीकं कृत्वा, तस्याएव पुरः स्थितः ॥१२॥
विद्यामेतां महाभक्तथा । संयताक्षोमहामतिः । दिनत्रयेन संसाध्यः, केवलीव भवेन्नरः ॥ १३ ॥ भाषा-मंत्रोद्धार ॐ हीं लाहापलक्ष्मी इवाँ क्ष्वी कुहंसस्वाहा, यहमंत्र मुनि भाषितहै. इसमंत्रको महासत्वशाली संयम आरामगामि साधुपुरुषने साधना, स्नान करके केशरचंदनका शरीरमें लेपकरके किनारीवाला सफेद रेशमी कपडा पहनके अहमकरके कुमारी कन्याको जिमाकर तथा गुरुमहाराज व कुमारी कन्याको वस्त्रदान देकर पिछे श्रीमद अंबिका देविकी मुती शुभ स्थानमें स्थापनकरे उनका प्रक्षाल पुजा आदिकरके महाभक्तिपूर्वक पांचोइंद्रियोका दमन करताहवा तिनदीनमें १३००० चमेलीके ताजे फुलोंसे जापकरे उत्तरसेवामें दशांश आहुति देवे मंत्र सिद्ध होवे. साधनकर्ता केवलीसहश होताहै. भुतभविष्य वर्तमानकहने में.
यत्परैश्चिन्तितं कार्य, स्वयं वा चिन्तितं भवेत । नष्टंवा निहितं चापि, तथाज्ञानस्य नामकम् ॥१४॥
अततिं वर्तमानं वा, भविष्यं वा यदर्थयेत् । ज्ञातुं मत्री तकं सर्व, कथयत्येषा कर्णयोः ॥ १५ ॥ भाषा-दुसरेने या अपने आपने चिंतित कियाहुवा कार्य, नाश होगया कार्य, गुप्तरखीहुई वस्तु, तथा भुत भविष्य वर्तमान समयकी हकीकत इत्यादि कोइभी जाननेकी इच्छा मांत्रीककी होवेतो उसके कर्णमें देवी बैठे बैठे सर्व हकीकत कहदेतीहै.
Jain Educat1129
renal
For Personal Private Use Only
C
inelibrary.org
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थोऽ
विद्यारत्नमहानिधी
धिकार:४
ॐ ही लाह्वापलक्ष्मीच, हंसस्वाहा च विन्यसेत् । विश्वोपकारिणीविद्या मेतां तत्वविदोविदुः ॥१६॥ सहस्रं दशकं जाती, पुष्पैः पूर्व प्रजप्यते । हूयते तु दशांशेन, पश्चाद्विद्या प्रसिध्यति ॥१७॥
भाषा-मंत्रोद्धार ॐ हीं लाहापलक्ष्मीहंसवाहा. ताजे चमेलीके फुलोंसे १०००० जाप करके दशांश आहुति करे तो यहविद्या सिद्ध होतीहै जिसे मंत्रवादी विश्वोपकारिणी महाविद्या कहतेहै.
आज्ञामात्रेण संसिद्धा, करोत्येषा शरीरिणाम् । जङ्गमे स्थावरे वापि, विषेवीर्यविनाशनम् ॥१८॥ भाषा-विद्यासिद्ध होनेपर आज्ञामात्रसे देहधारीका जंगमस्थावर विष नष्ट करताहै.
एतद्विद्यात्रयं भव्य, जीवोपकृतिहेतवे । मयागममहाम्भोधि-मध्यादुधृत्यदर्शितम् ॥१९॥
मिथ्यादृशानदातव्यं, दातव्यं सुदृशांपुनः । दातव्यं योग्य जीवाना--मयोग्यान न दापयेत् ॥ २०॥ भाषा-यह तीन विद्याओंको भव्यजिवोंके उपकारके लिये आगम समुद्रका मंथन करके उद्धार कियाहै. यहविद्या मिथ्या दृष्टिको न देना सम्यक् दृष्टि योग्यपुरुषको देना चाहिये.
षान्त ककार संयुक्तं, लकारं सान्त संयुत्तम् । रेफस्वर कलाक्रान्तं, विन्दुपेतं महाक्षरम् ॥२१॥
भाषा-पान्त-स, क कारकेसाथ, लकार-ल, सान्त-ह, लफारहकारके सहितमीलाना, रेफस्वर, कलाक्रांत करके विन्दुदेना (सक्ती ) ऐसा अक्षर बनें इसे महाक्षर कहतेहै.
For Personal.
Use
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
चतुर्थोऽ धिकारः४
महानिधी
RASxSRXISABERNMaipan
इदमेवाक्षरलक्ष-वारं रक्त प्रसुनकैः । जप्तं करोति जन्तूनां, वश्याकृष्टिमहोदयम् ॥ २२॥ भाषा-रक्त कणेरके फुलोंसे एक लक्ष जाप करे तो महावश्याकर्षणको करताहै जिससे महोदय होताहै.
इद्रमेवा क्षरं लक्ष-वारं जाती प्रसूनकै । जाड्यं हरति जन्तूनां, जप्तं सद्ज्ञान मुद्रया ॥२३॥ भाषा-चमेलीके फुलोंसे एकलक्ष ज्ञानमुद्रासे जाप करतो अज्ञानताका नाश होताहै बुद्धि बढतीहै महाकवि होताहै.
गजा गोयोषितः क्षुद्र, जन्तवोयान्तिवश्यताम् । एतद्बीज प्रभावेन, साधकानामसंशयम् ॥ २४ ॥
विद्वद्वादिमहेभानां, स्तंभकुंभविदारणे । एतदेव परं बीजं, कंठीरवपदायते ॥२५॥ भाषा-हाथी, सांढ क्षुद्र जन्तु इस बीजमंत्रके प्रभावसे वश होतेहै, विद्वानरूप हाथीके कुंभविदारण करनेमे बीज मंत्रके प्रभावसे सिंह सदृश होताहै. [मांत्रीक ]
ॐ हीं देवि नमः तुभ्य-मंभोरुह निभानने । नमनभश्वरीमौली, मानिक्यरुणितंक्रमे ॥ २६ ॥ भाषा-यह मंत्ररुप श्लोक है.
लक्षत्रयप्रजापेन, जातीपुष्पैः प्रसिध्यति । सरस्वतीमहादेवी, दिव्याकमलवासिनी ॥२७॥ गद्यपद्य मयीवाणी, गंगानीरानुकारिणी । निर्यातिसततं तस्मात् , यस्यतुष्टा सरस्वती ॥२८॥
Jain Education
For Personal
Private Use Only
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थोऽ
विद्यारत्न
विकारः४
महानिधी
भाषा-चमेली के ताजे फुलोंसे तीन लक्ष जाप करनेसे दिव्यकमल बासिनी महादेवि सरस्वति प्रसन्न होती है. जिसपे सरस्वतिकी कृपा है. उसके मुखकमलसे गंगाके प्रवाहके समान अखंड गद्यपद्य मयीवाणी निकलती है.
बंधेबोधेपि तेषांचा-विश्रान्तं भते मति । येषामेषा महादेवी, वरदेभूत मानसा ॥२९॥
प्रवंधे सेतुबंधेन, रामस्येव पताकिनी । तेषां प्रयाति सत्कीर्तिः पारं नीरपतेरपि ॥३०॥ भाषा-प्रबंधके बोधमे अविश्रांत उल्लसायमान बुद्धि होती है. जिसपे सरस्वतीकी कृपा होवे उसे क्या कमी जिसतरह रामचंद्रकी सेना सेतु बंधसे समुद्रपार होती है. उसी तरह सत्कीर्ति समुद्र पारतक जाती है.
ॐ वाग्वीजंचमायाच, कमला कामवर्णको । सतत्वमादि वर्णाश्च, नमोन्तासर्ववेदिनाम् ॥ ३१ ॥ भाषा-ॐ, वाग्वीज-ऐ”, माया-ही, कमला-श्री, कामवर्णक-क्की, सतत्व-ही, सर्ववेदिनाम्आदिवर्णाअसिऑउसानमः मंत्रोद्धार ॐ ऐहीं श्रीं क्ली-ही असिजाउसामना
___ एषलोके महामंत्र, पंचानां परमेष्टिनाम् । त्रिभुवनखामिनीनाम पुण्यलभ्या महात्मभिः ॥३२॥ भाषा-इस लोकमे पंचपरमेष्टिका त्रिभुवनस्मामिनीनाम महामंत्र महात्माओंको पुण्यसे प्राप्त होताहै. __लक्षजापप्रदानेन, दशशिन च होमतः । सिद्धिंयाति महामंत्रः गुरुतत्वैकशालिनाम् ॥ ३३ ॥ भाषा- पुर्वसेवामें एकलक्ष जाप करमा उत्तर सेवामें दशांश आहूति देने से महासत्त्वशालिको मंत्रसिद्धि होतीहै.
Fer Personal Private Use Only
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
Jain Education
KKKKK
मेघालृष्टिं घटस्तंभं, प्रतिमाचालनं तथा । करोत्येष मनुष्याणां, मनोवांछितसिद्धिदः ॥ ३४ ॥ राजवश्यं देववश्यं, वश्यंच सुरयोषिताम् । वश्याकर्षणदक्षोयं, सर्ववश्यविधायकः ॥ ३५ ॥ भाषा - यह मंत्र मेघाकर्षण, घटस्तंभ, प्रतिमाचालन तथा मनुष्यको मनवांछीत सिद्धि प्रदान करता है राजवश्य, देववश्य, देवांगना वश्य करता है, वश्याकर्षणमें दक्ष है. सर्व प्रकारका वश्य करता है.
ॐ ऐं माययोपेतं, पद्मासतत्व कामदम् । तँ कलिकुंड नाथाय, सौंहींच नमः इत्यपि ॥ ३६ ॥
कलिकुंडनाथाय ॐ, नहीँ नमः मंत्रोद्धारः - ॐ
| भाषा - ॐ ऐ माया--हीं, पद्माश्री, सतत्वहीँ कामदं क्लीं,
ऐ हीँ श्रीं ह्रीं ह्रीँ व कलिकुंडनाथाय ॐ -हीँ नमः
श्रीकलिकुंडदंडस्य, मूलमंत्रोयमुत्तमः । तपोभिरमलैः लभ्यो - नुचीर्णैः पूर्वजन्मनि ॥ ३७ ॥ | भाषा- ये श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथका मंत्र पुर्वभवकी निर्मल तपस्यासे प्राप्त होता है.
श्रीमत्पार्श्व जिनस्याग्रे, यंत्रमाधाय सद्विधिः । जातिपुष्पैः जपेत् लक्षं, मंत्रमेतत् दशांशतः ॥ ३८ ॥ होमेनसाधयेत् धीमान्, सर्वकार्य फलप्रदम् । भक्तिभाजां विशेषेन, शुभाशुभनिरूपकम् ॥ ३९ ॥
For Personal & Private Use Only
चतुर्थोऽ
धिकारः ४
३०
inelibrary.org
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
चतुर्थोऽ धिकारः४
महानिधी
भाषा-श्रीमद्पार्श्वनाथभगवानके सन्मुख यंत्रको स्थापनकर सविधिसे ताजे चमेलीके फुलोंसे एक लक्ष जाप करे फिर दशांश आहुति देनेसे सर्वकार्यको करनेवाला यहमंत्र सिद्ध होताहै. यहमंत्र भक्तको शुभाशुभ कहताहै.
एक भुक्तोषितो भुत्वा, यद्वाषन्मासकावधि । अष्टोतरशतं जापं, कुर्यादस्य दिनेदिने ॥४॥ ___ भवद्भुत भविष्याण, सुखदुःखानि देहिनाम् । सैकत्रावस्थितोवेत्ति, योजनानां शतादपि ॥४१॥ भाषा-एकासन करते हुये ६ मास पर्यंत हररोज १०८ वार जपेतो एकस्थानमे रहते हुये १०० योजनकी बात जैसे सुखदुःख भुतभविष्य वर्तमान आदि जानने लगता है.
ब्रह्मचर्यः भृतः पंच-वर्षाणि ध्यायतः सतः । सद् ध्यान ध्यान निष्टस्य, विकथारहितस्यच ॥४२॥ पलं पलं सुवर्णस्य, ददात्येषोनुवासरम् । व्ययेतु तच्चकर्तव्यं, नधर्तव्यं दिनान्तरे ॥ ४३ ॥
धृतेनहीयते सिद्धिः, सिद्धि वर्धेत तद्ययात् । व्ययोत एव कर्तव्यः, सत्पात्रादौ मनीषिभिः ॥४४॥ भाषा-ब्रह्मचर्यको धारन करता हुवा पांचवर्षतक सद्ध्यान निष्टहोके तथा विकथा रहित होके जपे तो प्रतिदिन पलपल सुवर्ण देता है, वह सर्व सत्पात्रादीमें दररोज खर्च करदेना बासी न रखना बासी रखनेसे सिद्धि कम हो जाती है.
ॐ शून्य द्वयं षष्ट-स्वरायं बिन्दुसयुतम । पुनः शून्यः द्वयं ह्येका--दशस्वर समन्वितम् ॥४५॥ सप्तवर्गादिमवर्ण, षष्टस्वर विराजितम् । बिन्दुपेतंच झाँ हूँ, फुडिति वर्ण विभूषितम् ॥४६॥
Jain Eduate
For Personal Private Use Only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
WISARKARISARAIYAR
भाषा-ॐ, शून्यद्वयं-दो हकार, पष्ट स्वरायंबिंदू संयुतम्-पांचवा स्वर [उ] बिन्दुसहितमीलाना, शून्यद्वयं-दोह-|| कार, ह्येकादशस्वर समन्वीतम्-ग्यारवास्वर (ए) मिलाके, सप्तवर्गादिमंवर्ण-सातवर्गके आदिकेवर्ण (क, च, ट, त,
चतुर्थोऽ प, य, श) षष्टस्वर विभूषितम्-छटावर (ऊ) सहित, बिन्दुपेतंच-बिंदु अनुस्वार देकर, झाँ, हूं, फुडितिवर्ण विभूषि- धिकारः४ त-फट, मंत्रोद्धारः-ॐ हुं हुं हे हेंकू चूंढूंतूं पूं यूं शू झाँहूं फट्
सर्वकर्मकरं मंत्रं, श्रीमत्पार्श्वजिनशितुः । लक्षजापप्रदानेन, साधयित्वा स्फुटं कुरु ॥४७॥ राजद्वारे व्यवहारे, सभायां देशनाविधौ । विद्वद्विवादवेलायां, परविद्यांतकर्मणि ॥४८॥ वश्ये विद्वेषणे मोहे, पापोच्चाटणकर्मणि । तीर्थ प्रभावनादौच, रुष्टानुनयकर्मणि ॥४९॥
एषएव महामंत्रो, महाकल्याणकारकम् । सर्वदा सर्व कार्येषु, स्मरणीया मनीषिभिः ॥५०॥ भाषा-सर्व कार्यको करनेवाला श्रीपार्श्वनाथभगवानका ये मंत्र एक लक्ष जाप करनेसे सिद्ध होताहै. ये मंत्र राजदरबारमें, व्यवहारमें, सभामें, व्याख्यानदेनेमें, विद्वानसे वादविवाद करनेमें, दुसरेकी विद्या नष्ट करनेमें, वश्य, विद्वेषण, मोह तथा पापीयोंका उच्चाटन करनेमे, तीर्थकी प्रभावना आदि करनेमे, रुठे हुयेको मनाने में काम आतीहै. ऐसा यह महाकल्याणकारक महामंत्र सर्वदा सर्व कार्यमे ज्ञानी मनुष्यको स्मरण करना चाहिये.
Jain Educatio
n
al
For Personal Private Use Only
libre
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्नमहानिधी
चतुर्थोऽ धिकारः४
इति दशपूर्वधराचार्य श्रीभद्रगुप्तविरचितायां श्रीविद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र
द्वात्रिंशिकायां शुभाशुभादिमंत्राष्टक वर्णनोनाम चतुर्थोधिकारः अथातः संप्रवक्ष्यामि, गुरुशिष्य शुभाशुभम् । येनविज्ञान मात्रेण, कल्याणं जायते द्वयोः ॥ १॥ भाषा-अबमैं गुरुशिष्यका शुभाशुभ वर्णन करुंगा जिसके जाननेसे दोनोका कल्याण होता है.
गुरुनाज्ञात तत्वेन, सकलागमवेदिना । शंशांकशान्तचित्तेन, क्षमागुणविराजिना ॥२॥ भाषा-सकलागमका जानकार तत्वज्ञानी चन्द्रके समान शान्त, चित्तवाले तथा क्षमा गुण विराजित गुरु होते है.
पूर्वमात्महितं ज्ञात्वा, सूरिणा गुणभूरिणा । शिष्यस्यापि हितं चिन्त्यं, दातुकामेन किञ्चन ॥३॥ भाषा-बहत गणवाले आचार्योने पहले आत्महित जानके शिष्यको मंत्र देनेकी इच्छासे उसकाभी हित विचारना.
सिद्धं साध्यंचविज्ञेयं, सुशुद्धं शत्रुरूपिणं । मृत्युदं चैवनिःशेषं, मंत्रमंत्रविदो विदुः ॥४॥ भाषा-सिद्धं साध्यं सुशुद्धं शत्रुरुपिणं मृत्युदं ऐसे पांच हिस्सोमें सब मंत्रको विभक्त करना ऐसा मंत्रवादि कहते है.
सिद्धं सारफलंज्ञेयं, दातव्यं भक्तिशालिने । साध्यं साध्यफलं चापि, देयं तदपि सूरिणा ॥ ५॥ स्वल्पं फलं सुसिद्धंच, मंत्रो यच्छति देहिनाम् । सोपिकस्यापिदातव्य-स्तद्धितस्य शरीरिणः ॥ ६ ॥
Jain Educa
For Personal Private Use Only
+
ininelibrary.org
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारत्न
|पंचमोऽ धिकारः ५
महानिधी
| शत्रुरुपीच शत्रुस्तु, मृत्युदो मृत्यु नामकः । नैमौकस्यापि दातव्यौ, परलोकफलार्थिभिः॥७॥ *भाषा-सिद्ध सारफल देनेवाला जानना साध्य-साध्यफल देनेवाला जानना भक्तिशालीको आचार्य महाराजने देना,
सुसिद्ध स्वल्प फल देनेवाला मंत्र जानना वहां भी शरीरधारीको उसका हित विचारते हुये देना, शुत्रुरुपी-शत्रु समझना. मृत्युद-मृत्युको देनेवाला है. परलौकीक फलकी इच्छा करनेवाले आचार्योने यहदोनो मंत्र किसीको नहीं देना.
अ इ उ ए ओ पंचतान् , स्वरान् कोष्टकपंचके । कादिकान् हान्त वणोन्च, डढणाक्षरवर्जितान्॥८॥
वर्णक्रमेण संलिख्य, मातृकाचक्र मुज्वलम् । योग्यायोग्यं ततोचिन्त्यात , मंत्रं शिष्यद्वयोरपि॥९॥ भाषा-अ, इ, उ, ए, ओ, ये पाच खर पांच कोठेमें लिखके उसके नीचे क, से लेकर ह पर्यंत के वर्ण डढण अक्षर छोडके वर्णक्रमसे लिखना; यह मातृका चक्र लिखकर गुरुशिष्यदोनोने योग्यायोग्य विचार करना.
सिद्धं वा यदिवा साध्यं, मंत्र प्राप्य दुरासदम् । शिष्येनापिविधातव्या, सद्गुरो भक्तिरीदृशी ॥१०॥ भोजनं वस्त्र दानंच, पात्रदानं तथैवच । दानं सारसुवर्णस्य । विधातव्यं मनीषिना ॥११॥
पादप्रक्षालनं चैव, पृष्टिसंवाहनंतथा । स्वयमासनदानंच, कर्तव्यं सद्गुरोरिह ॥१२॥ भाषा-सद्गुरुसे, दुर्लभ ऐसे सिद्ध वा साध्य मंत्रप्राप्तकरके शिष्यने गुरुभक्तिकरनी चाहिये, अन्नपान, वस्त्र, पात्र, आदिका दानदेना, सुवर्ण मुद्रासे ज्ञानपुजा करनी गुरुमहाराजका पगधोना, अंगदबाना, स्वयं उठकर आसनदान
Jain Educat
For Personal Private Use Only
helibrary.org
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्यारलमहानिधी
KIYAKHREEKRINAKENARAN
आदि करना चाहिये.
पंयोऽ दक्षो जितेन्द्रिय धीमान् , कोपानलजलोपमः । सत्यवादी विलोभश्च, मायामदविवर्जितः ॥ १३ ॥ मानत्यागी दयायुक्तः, परनारी सहोदरः । जिनेन्द्रगुरुभक्तश्च, मंत्रग्राही भवेन्नरः ॥१४॥
धिकारः४ भाषा-हुशियार, जितेंद्रिय, बुद्धिमान, क्रोधरहित, सत्यवादी, निर्लोभी, मायामद रहित, मानत्यागी, दयावाला, परनारी सहोदर, जिनेंद्रभक्त, गुरुभक्त इतने गुणोवाला मनुष्य मंत्रग्रहण करनेवाला होसकता है.
शुभेलग्ने शुभेवारे, तिथिनक्षत्र चन्द्रके । मंत्रदानं विघातव्यं, गुरुपूजापुरस्सरम् ॥१५॥
दीपोत्सवे व्यतिपाते, चंन्द्रसुर्योपरागयोः । विशेषेन विधातव्यं । मंत्रदानं यथाविधि ॥१६॥ भाषा-शुभलग्न, शुभवार, शुभतिथि, शुभनक्षत्र. तथा शुभचंद्र इत्यादि वेलामें मोटी पूजा पढाकर शिष्यको मंत्र देना, विशेष करके दीपमाला, व्यतिपात, सुर्यचंद्रके ग्रहणमे यथाविधि मंत्रदेना.
श्रुतसागरमालोक्य, महारत्न समामया। एते मंत्रा समाख्याता, योग्यानां हितकाम्पया ॥१७॥
परीक्षितगुणानां तु, भक्तियुक्तशरीरिणाम् । श्रद्धावंतां प्रदातव्या, सुखमिच्छद्भिरात्मनः ॥१८॥ भाषा-योग्य जीवोंके हितके लिये आगमसमुद्रका अवगाहन करके महारत्न तुल्य इनमंत्रोका कथन किया है. इसे में अपने आत्मकल्याणकी इच्छारस्वनेवाले गुरुने, जिसके गुणोंकि परीक्षा कीहऐसे भक्तियाले श्रद्धावाले शिष्यको मंत्र देना.
in Education
For Personal & Private Use Only
Jinelibrary.org
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
पंचमोड
विद्यारत्नमहानिधी
धिकारः ५
मायाहंकार युक्तेषु, श्रद्धाहीन दुरात्मसु । निर्गुणेषु य एतास्तु, मंत्रान् दाता स्वदोषतः ॥१९॥ सोनन्तं लप्स्यतेसद्य, संसार दुःखरूपिनम् । अनन्तानि च दुःखानि, शिस्यस्यापि प्रदास्यति ॥ २० ॥
इति ज्ञात्वा प्रयत्नेन, एकांते गुरुभक्तितः । भक्तियुक्ताय शिष्याय । दद्याद् मंत्रमनुत्तरम् ॥ २१ ॥ भाषा-मायी, अहंकारी, श्रद्धाहीन, दुष्ट, निर्गुण इत्यादिको मंत्र देवेतो देनेवाला दोषीहै. वो अनन्त संसारके दुःखमें अनंतवार भ्रमण करेगा. शिष्यभी अनंत संसारके अनन्त दुःखका अनुभव करेगा. ऐसा जानकर गुरुमहाराजने भक्त शिष्यको गुरुभक्तिके साथ एकांतमें मंत्र देना चाहिये.
द्वात्रिंशिकाया यःकल्पं, भक्तियुक्तःकरिष्यति । सदभ्यस्तं सदातस्य, सर्वज्ञत्वं भविष्यति ॥ २२ ॥ इहलोकेपिदुःखानि, दारिद्रानिच दुरतः । क्षयंतस्य प्रयास्यन्ति, योमुष्मै भक्तिबंधुरः ॥२३॥
तस्मादेतांमहामंत्र, द्वात्रिंशिकांमहामतिः । अनाख्येयामयोग्यनां, स्वयंनित्यं विभावयेत् ॥ २४ ॥ |भाषा-जो मनुष्य भक्तियुक्तद्वात्रिंशिंका कल्पका अभ्यास करताहै वह सर्वजके समान हो जाता है. उसका इस लोककी दरीद्रावस्था आदि दुख दुरसेही क्षय होता है. इसलिए महामति (मुनि) ने स्वयं विचारकरके अयोग्य मनुष्यको नहीं देना चाहिये.
REARRIAGRANEMIERSware
For PersonasPrivate Use Only
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
विद्वेषणकमे
उच्चाटनकर्म
शान्तिकर्म वरुणदिशि
पौष्टिक कर्म नैऋत्यदिशि
भनिदिशि
वायन्यदिशि
अर्धरात्रि
GOODBCBGesam
प्रभातकाल
संध्याकाळ
अपराहकाल
8 अथ अष्ट कर्मप्रयोग विधिविधानम् - वश्यकर्म ___ आकर्षणकर्म । स्तंभनकर्म | मारणकर्म कुवेरदिशि यमदिशि पूर्वाभिसन्मुख इशानदिशि पूर्वाहकाल মুশঙ্কিা पूर्वाहकाल संध्याकाल सरोजमुद्रा अंकुशमुद्रा शंखमुदा
वजमुद्रा स्वस्तिकासन दंडासन वासन
भद्रासन वषट्पलष वौषट्पलुव ठठपल्लव
घेषेपल्लव रक्तवस्त्र उदपार्कवस्त्र पीतवस्त्र कृष्णवस्त्र
ज्ञानमुद्रा
ज्ञानमुद्रा
प्रवालमुद्रा कुर्कुटासन
प्रवालमुद्रा कुर्कुटासन
पंकजासन
पंकजासन
स्वाहापल्लव
स्वधापल्लव
श्वेतवन
घेतवस्त्र
धूम्रवस
धूम्रवस्त्र
रक्तपुष्प
रक्तपुष्प
पीतपुष्प
कृष्णपुष्प
धूम्रपुष्प
धूम्रपुष्प
श्वेतपुष्प
श्वेतपुष्प श्वक्तवर्णभ्यान । श्वेतध्यान
। रक्तभ्यान
रक्तध्यान
पतिध्यान
। कृष्णध्यान
| धुम्रज्यान
धूभ्रष्यान
Jain Education n
ational
For Personal Private Use Only
wwwine bary.org
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
रेचकयोग
| पूरकयोग | पूरकयोग दीपनआदिनाम दीपनआदिनाम स्फटिकमणि मुक्ताफल
पल्लवान्त्यनाम
मध्यामागुलि
पूरकयोग पूरकयोग कुंभकयोग - रेचकयोग । रेचकयोग संपुटमध्यनाम | ग्रंथवांतरितनाम वैदर्भाद्यक्षरमध्यनाम रोदनआदिमध्यातनाम| पल्लवन्त्यिनाम प्रवालमणि जीवापुत्ता
जीवापुचा जीवापुत्ता जीवापुचा अनामिका
कनिष्टिकांगु. तर्जन्यांगुलि. तर्जन्यागुलि. तर्जन्यांगुलि. वामहस्त दक्षिणहस्त दक्षिणहस्त दक्षिणहस्त दक्षिणहस्त
मध्यमांगुलि
SOOOOOOOGO
दक्षिणहस्त
दक्षिणहस्त
जीवापुत्तमाला तर्जन्यांगुलि. दक्षिणहस्त दक्षिणवायु वर्षाऋतु
memaCOCsecoCacae
वामवायु
वामवायु
वामवायु
दक्षिणवायु
दक्षिणवायु ग्रीष्मऋतु
शरदऋतु
हेमंतऋतु
वसंतऋतु
शिशिरऋतु
मध्यरात्र
प्रातकाल
दक्षिणवायु
दक्षिणवायु वसंतऋतु वसंतऋतु पूर्वाहकाल पूर्वाहकाल अग्निमंडल | पृथ्वीमंडल 0 इति सम्पूर्णम्
संध्याकाल
मध्यदिन
पूर्वाहकाल जलमंडल
अपराहकाळ
जलमंडल
| जलमंडल
। वायुमंडळ
| वायुमंडल
| वायुमंडल
।
For Personal
Private Use Only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
इति दशपुर्वाधराचार्य श्रीभद्रगुप्तविरचितायां श्रीविद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र
द्वात्रिंशिकायां गुरुशिष्यशुभाशुभ संशुचकोनाम पंचमोधिकारः
विधारत्नमहानिधी
पंचमोऽ
|धिकार:५
द्वि.|५|१२३
पं.
२
३
४
५
मा
त
का
च
कं
Jain Education
For Personal Private Use Only
Jainelibrary.org
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
। इति विद्यारत्नमहानिधिसम्पूर्णम् ।
ERKARKIRAIMANORAKOOOO000000000000000000000000000RRPOOOOOOO
For Personal