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________________ तृतीयोऽ विद्यारत्नमहानिधी धिकारः३ त्रयोदश दिनान्युच्चैः, पुजानैवेद्यपूर्वकम् । उच्छिष्टोच्छिष्टवेलायां, जपेद्वारान् त्रयोदशः ॥ २५॥ डेविकायैप्रदातव्यं, नैवेद्यं प्रतिवासरम् । चतुर्दशेन्हि संप्राप्ते, मध्येकृष्णघटं क्षिपेत् ॥२६ ॥ रक्तपुष्पैश्चसंपुज्य, पुत्रिकां तां च मृन्मयीं । यावता तैलपुरेण, ऋडेत्रावप्रमाणकम् ॥२७॥ कूपे सरसि न द्यावा, प्रवाहयेत्ततो घटम् । सिद्धत्येषाततोविद्या, महासत्वैकशालिनाम् ॥ २८॥ भाषा-मट्टीकी पुतली बनाकर टुटे सुपडे में एकांतस्थानमें रखे, वहांपर धुपदीप नैवेद्य पुष्पपुर्वक यथाविधि पूजा करे. तथा वहां उपरके मंत्रके १३००० पाठकरे. १३ दिनमें हररोज पाठ तथा पुजा करे तथा १३ दिनतक उच्छिष्ट वेलामें |१३ वार मंत्र हरसमय पढे. प्रतिदिनका चढाया हुवा नैवेद्य दुमनीको देना बाद १४ वे रोज मद्दीकी पुतलिकी लाल कणेरके फुलोंसे पुजा करके काले रंगके घडेमे रखे ओर उपरसे तेल सरिसवका डाले. तेल इतना डाले कि तेलमें पुतली डुबजाय पीछे उसघडेको कुप, तलाव या नदीके पानिमें बहादेवे ऐसा करनेसे महासत्वशाली जीवको यह विद्या सिद्ध होतीहै. यद्येकदापि पुरुषाणां, साधयतां स्खलिंतभवेत । षण्माषान्ते ततोविद्यां, पुनरेतां प्रजापयेत् ॥ २९॥ सिद्धासती च जन्तूनां, ददाति प्रतिवासरम् । द्रम्मान त्रयोदशेवैतान् , पुनरन्यस्यनोवदेत ॥३०॥ For Personal Pre Use Only
SR No.600214
Book TitleVidyaratna Mahanidhi
Original Sutra AuthorBhadraguptasuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1936
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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