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________________ विद्यारत्न चतुर्थोऽ धिकारः४ महानिधी भाषा-श्रीमद्पार्श्वनाथभगवानके सन्मुख यंत्रको स्थापनकर सविधिसे ताजे चमेलीके फुलोंसे एक लक्ष जाप करे फिर दशांश आहुति देनेसे सर्वकार्यको करनेवाला यहमंत्र सिद्ध होताहै. यहमंत्र भक्तको शुभाशुभ कहताहै. एक भुक्तोषितो भुत्वा, यद्वाषन्मासकावधि । अष्टोतरशतं जापं, कुर्यादस्य दिनेदिने ॥४॥ ___ भवद्भुत भविष्याण, सुखदुःखानि देहिनाम् । सैकत्रावस्थितोवेत्ति, योजनानां शतादपि ॥४१॥ भाषा-एकासन करते हुये ६ मास पर्यंत हररोज १०८ वार जपेतो एकस्थानमे रहते हुये १०० योजनकी बात जैसे सुखदुःख भुतभविष्य वर्तमान आदि जानने लगता है. ब्रह्मचर्यः भृतः पंच-वर्षाणि ध्यायतः सतः । सद् ध्यान ध्यान निष्टस्य, विकथारहितस्यच ॥४२॥ पलं पलं सुवर्णस्य, ददात्येषोनुवासरम् । व्ययेतु तच्चकर्तव्यं, नधर्तव्यं दिनान्तरे ॥ ४३ ॥ धृतेनहीयते सिद्धिः, सिद्धि वर्धेत तद्ययात् । व्ययोत एव कर्तव्यः, सत्पात्रादौ मनीषिभिः ॥४४॥ भाषा-ब्रह्मचर्यको धारन करता हुवा पांचवर्षतक सद्ध्यान निष्टहोके तथा विकथा रहित होके जपे तो प्रतिदिन पलपल सुवर्ण देता है, वह सर्व सत्पात्रादीमें दररोज खर्च करदेना बासी न रखना बासी रखनेसे सिद्धि कम हो जाती है. ॐ शून्य द्वयं षष्ट-स्वरायं बिन्दुसयुतम । पुनः शून्यः द्वयं ह्येका--दशस्वर समन्वितम् ॥४५॥ सप्तवर्गादिमवर्ण, षष्टस्वर विराजितम् । बिन्दुपेतंच झाँ हूँ, फुडिति वर्ण विभूषितम् ॥४६॥ Jain Eduate For Personal Private Use Only
SR No.600214
Book TitleVidyaratna Mahanidhi
Original Sutra AuthorBhadraguptasuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1936
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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