SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थोऽ विद्यारत्न विकारः४ महानिधी भाषा-चमेली के ताजे फुलोंसे तीन लक्ष जाप करनेसे दिव्यकमल बासिनी महादेवि सरस्वति प्रसन्न होती है. जिसपे सरस्वतिकी कृपा है. उसके मुखकमलसे गंगाके प्रवाहके समान अखंड गद्यपद्य मयीवाणी निकलती है. बंधेबोधेपि तेषांचा-विश्रान्तं भते मति । येषामेषा महादेवी, वरदेभूत मानसा ॥२९॥ प्रवंधे सेतुबंधेन, रामस्येव पताकिनी । तेषां प्रयाति सत्कीर्तिः पारं नीरपतेरपि ॥३०॥ भाषा-प्रबंधके बोधमे अविश्रांत उल्लसायमान बुद्धि होती है. जिसपे सरस्वतीकी कृपा होवे उसे क्या कमी जिसतरह रामचंद्रकी सेना सेतु बंधसे समुद्रपार होती है. उसी तरह सत्कीर्ति समुद्र पारतक जाती है. ॐ वाग्वीजंचमायाच, कमला कामवर्णको । सतत्वमादि वर्णाश्च, नमोन्तासर्ववेदिनाम् ॥ ३१ ॥ भाषा-ॐ, वाग्वीज-ऐ”, माया-ही, कमला-श्री, कामवर्णक-क्की, सतत्व-ही, सर्ववेदिनाम्आदिवर्णाअसिऑउसानमः मंत्रोद्धार ॐ ऐहीं श्रीं क्ली-ही असिजाउसामना ___ एषलोके महामंत्र, पंचानां परमेष्टिनाम् । त्रिभुवनखामिनीनाम पुण्यलभ्या महात्मभिः ॥३२॥ भाषा-इस लोकमे पंचपरमेष्टिका त्रिभुवनस्मामिनीनाम महामंत्र महात्माओंको पुण्यसे प्राप्त होताहै. __लक्षजापप्रदानेन, दशशिन च होमतः । सिद्धिंयाति महामंत्रः गुरुतत्वैकशालिनाम् ॥ ३३ ॥ भाषा- पुर्वसेवामें एकलक्ष जाप करमा उत्तर सेवामें दशांश आहूति देने से महासत्त्वशालिको मंत्रसिद्धि होतीहै. Fer Personal Private Use Only
SR No.600214
Book TitleVidyaratna Mahanidhi
Original Sutra AuthorBhadraguptasuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1936
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy