SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाद षोडष स्वरलिखें पिछे अष्टवर्ग लिखे संधिमें तत्वाक्षर ही लिखे को ही कारवोष्टित करे रेखाके अंतमे विद्यारत्न-IX तृतीयोऽ ौ कारलिखे पृथ्वी मंडलकरके लकडीके पट्टेमे, कपडे में अगर भूर्ज पत्रमे अष्टगंधसे लिखे इससे शकेंद्रआदिका स्तंभन १ महानिधी होता है. ईसी यंत्रको भोजपत्रमें, कपडेमें, कपरमें मतकके घडेके ठिकरेमें तथा मृतमनुष्यके कपडेमें लिखकर स्मशान |धिकारः३ भुमिमें संपुटकर गाडदेवे २१ दिनतक सवरे तथा संध्याको तिल, तुष, राई और लवण मिलाकर १०८ बार जापकरें सिद्ध होता है मंत्रसे उच्चाटन, विद्वेषण, मारण, मोहन तथा मनो वांछित कार्य सद्गुरुकी कृपासे सिद्ध होते है. __ॐउल्कामुख्यलताक्षी, विद्युजिह्वे महावले । अमुकस्य ज्वरं सद्यः, आनयानयरौद्रके ॥ १०॥ द्विर्दहः द्विःपचोंचार्य, स्वाहान्ते च ततः क्षिपेत् । एकं भक्तं ततःकृत्वा, सिध्दयेऽष्ट शतं जपेत् ॥ ११ ॥ कृष्णाष्टम्यां चतुदश्यां, चिताङ्गारसुपाददेत् । खरीमुत्रण संक्वथ्या, रलुकढुमसंपुटे ॥ १२ ॥ विलिख्येदं महामंत्र,-मेकांन्ते संपुटेक्षिपेत् । अष्टोत्तरशतं चास्य, प्रजपेत्प्रतिवासरम् ॥ १३ ॥ यन्नामलिखितंगर्भे, जप्तंचोद्यमपूर्वकम् । तस्यानये ज्वरं सद्य, सप्तास्यमपितत्क्षणात् ॥ १४ ॥ न तत् शक्रोपिसंहर्तुं, शक्नोतिज्वरमुर्छितम् । तदाक्षराली नो यावत् , क्षालिता पयसाकिल ॥ १५॥ भाषा-मंत्रोद्धारः-ॐ उल्कामुखी अलताक्षी विद्युज्जीढे महाबले रौद्रे अमुकस्य ज्वरं सद्य आनय आनय दहदह में For Personal Private Use Only
SR No.600214
Book TitleVidyaratna Mahanidhi
Original Sutra AuthorBhadraguptasuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1936
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy