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________________ विद्यारत्न महानिधी びび अहँ श्रीदशपूर्वधरभद्रागुप्ताचार्यविरचिता श्रीविद्यारत्नमहानिधि मंत्रद्वात्रिशिंकाकल्पः प्रणम्य श्री महावीरं । विद्यारत्नमहानिधिम् || मंत्रद्वात्रिंशिकां वक्ष्ये । सर्वकार्यप्रसाधिकाम् ॥ १ ॥ भाषा - भगवान श्री महावीर प्रभुको नमस्कार करके दशपुर्वधर भगवान श्रीभद्रगुप्ताचार्य सर्वकार्यको सिद्धकरनेवाली श्री विद्यारत्नमहानिधि नामकी अनुभुत मंत्र द्वात्रिंशिका कल्प फरमाते है. स्तम्भनंमोहमुच्चाटं, वश्याकर्षणज़म्भनम् । विद्वेषणं मारणंच, शान्तिकं पौष्टिकं तथा ॥ २ ॥ मुक्तिमार्गंच शास्त्रेऽत्र, भणिष्यामियथाविधिम् । एकाग्रीभूय भो भव्याः, श्रूयतां भक्तिपूर्वकम ॥ ३ ॥ भाषा - इस शास्त्र में स्तंभन, मोह उच्चाटन, वश्य, आकर्षण, जंभन, विद्वेषण, मारण, शांतिक, पौष्टिक, मुक्तिमार्ग इतनी वस्तुका विधिपुर्वक कथन करूंगा, भोभव्यजीवो भक्तिपुर्वक एकाग्रमनसे सुनो. सर्वज्ञाभं महामंत्रं, सर्वकल्याणकारकम् । सर्वकर्मकरं चैव, साधयेच्च यथाविधिम् ॥ ४ ॥ भाषा - सर्वज्ञकेसमान सर्व कल्याणकरनेवाले, सर्व कर्मको करनेवाले इस महामंत्रकी साधना यथाविधि करनी चाहिये. Jain Educational For Personal & Private Use Only प्रथमो धिकारः १ १ inelibrary.org
SR No.600214
Book TitleVidyaratna Mahanidhi
Original Sutra AuthorBhadraguptasuri
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1936
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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