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विद्यारत्नमहानिधी
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| लिखकर कुमारीकन्याके हातके कातेहुये सुतसे हस्तमे बांधेतो भुतादि दोष नाश होता है. स्त्रीको संतान पैदा होवे तथा सौभाग्यादि गुण संपदा लक्ष्मी प्राप्त होवे.
प्रणवं परमंतत्वं, मायाबीज विराजितम् । परमेष्टयादि पदचैव, हीकारंच नमः पदम् ॥ ४७ ॥
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त्रिसंध्यं विजने भूत्वा, जातिपुष्पैरथोत्तमैः । अष्टोत्तरं शतंजाप्य, -मस्या सर्वार्थसिद्धये ॥ ४८ ॥
भाषा — मंत्रोद्धारः - ॐ हीँ असिआउसा नहीँ नमः सर्व कार्यकी सिद्धिके लिये इस मंत्रको एकांतमें चमेलीके ताजे फुलोंसे त्रिकाल १०८ जापकरें सिद्धि होती है.
इत्याकृष्टिचवश्यादौ, मंत्राष्टकमुदीरितम् । श्रुताम्भोधिमबगाह्य, रत्नोच्चयमिवोज्वलम् ॥ ४९ ॥ भाषा - श्रुतांभोनिधिकी अवगाहना करके रत्नोके सदृश इस आकर्षण वश्यादि मंत्राष्टकका कथन किया है.
इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां वश्याकर्षणादिकर्मकरमंत्राष्टकवणनोनामद्वितीयोऽधिकारः
अथातः संप्रवक्ष्यामि, स्तंम्भस्तोभादिकंविधिम् । येनविज्ञानमात्रेण, जगतोऽजय्यता भवेत् ॥ १ ॥
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द्वितीयोऽ
धिकारः २
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