Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri,
Publisher: Mahavir Granthmala
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चतुर्थोऽ
विद्यारलमहानिधी
धिकारः४
श्रीमदम्बालिकादेव्या-बिम्ब माधायसमुवि । स्नानपूजादीकं कृत्वा, तस्याएव पुरः स्थितः ॥१२॥
विद्यामेतां महाभक्तथा । संयताक्षोमहामतिः । दिनत्रयेन संसाध्यः, केवलीव भवेन्नरः ॥ १३ ॥ भाषा-मंत्रोद्धार ॐ हीं लाहापलक्ष्मी इवाँ क्ष्वी कुहंसस्वाहा, यहमंत्र मुनि भाषितहै. इसमंत्रको महासत्वशाली संयम आरामगामि साधुपुरुषने साधना, स्नान करके केशरचंदनका शरीरमें लेपकरके किनारीवाला सफेद रेशमी कपडा पहनके अहमकरके कुमारी कन्याको जिमाकर तथा गुरुमहाराज व कुमारी कन्याको वस्त्रदान देकर पिछे श्रीमद अंबिका देविकी मुती शुभ स्थानमें स्थापनकरे उनका प्रक्षाल पुजा आदिकरके महाभक्तिपूर्वक पांचोइंद्रियोका दमन करताहवा तिनदीनमें १३००० चमेलीके ताजे फुलोंसे जापकरे उत्तरसेवामें दशांश आहुति देवे मंत्र सिद्ध होवे. साधनकर्ता केवलीसहश होताहै. भुतभविष्य वर्तमानकहने में.
यत्परैश्चिन्तितं कार्य, स्वयं वा चिन्तितं भवेत । नष्टंवा निहितं चापि, तथाज्ञानस्य नामकम् ॥१४॥
अततिं वर्तमानं वा, भविष्यं वा यदर्थयेत् । ज्ञातुं मत्री तकं सर्व, कथयत्येषा कर्णयोः ॥ १५ ॥ भाषा-दुसरेने या अपने आपने चिंतित कियाहुवा कार्य, नाश होगया कार्य, गुप्तरखीहुई वस्तु, तथा भुत भविष्य वर्तमान समयकी हकीकत इत्यादि कोइभी जाननेकी इच्छा मांत्रीककी होवेतो उसके कर्णमें देवी बैठे बैठे सर्व हकीकत कहदेतीहै.
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