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"विद्यारत्न
महानिधी
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पार्श्वनाथ भगवानप्रभुकी मूर्ती बनावे, उपरके मंत्रसे प्रतिष्ठा करावे तथा उसीमंत्रसे पुजा करे पिछे जाप करे. मंत्र सिद्ध होवे. इस मंत्रकी कृपासे मनुष्य इसलोकसंबंधि कार्यका जो जो विचार करे वे सबकार्य सिद्ध होते है. तथा राजदरबारमें, व्यवहारमें, वादविवादमें, धान्यसंग्रह करन में इत्यादि कार्यों में इस मंत्र का चिन्तन करनसे विजय प्राप्त होता है. इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिधौ अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां स्तंभस्तोभादिकर्मकरमंत्राष्टकवर्णनोनामतृतीयोऽधिकारः
अथात संप्रवक्ष्यामि, शुभाशुभादिसुचकम् । मंत्राष्टकमिदंरम्यं, सद्यप्रत्ययकारकम्
॥ १॥
भाषा - अबमें, शीघ्रफल देनेवाला तथा स्वानुभूत शुभाशुभ सूचक यानि स्वप्नविद्या, कर्णमें भूतभविष्य वर्तमान, जाननेकी विद्या, क्षुद्रजन्तुशमनविद्या इत्यादि विद्याओंका वर्णन करूंगा.
प्रणवं मायया युक्तं, लाह्वापलक्ष्मीकान्वितम् । वायु शुन्यावसानंच, मंत्रमत्रविदो विदुः ॥ २ ॥ सहस्रदशकं जाती-पुष्पैः पूर्वं प्रजप्यतु । पश्चाद्दशांशहोमेन । सिद्धिरस्याविधीयते कार्यकालेच संप्राप्ते, विघायैकाशनंतपः । अष्टोत्तरशतं जप्त्वा, स्वपेद्भूमौ व्रतस्थितः
॥ ३ ॥
॥ ४॥
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KHAYA
तृतीयोऽ धिकारः ३
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