Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 27
________________ विद्यारत्न महानिधी Jain Education Ze पचपच स्वाहा. कृष्णचतुर्दशी अगर कृष्णाष्टमीके रोज एकासन करके धुपदीप पुरस्सर १०८ बार जपने से सिद्धि होती है. प्रयोगः - काली चौदश या अष्टमीके दिन स्मशानमें जाकर चिता बीचका कोयला लाना फिर उस कोयलेको गधीके मुत्रमें पथ्थरपर घसकर अलुककी लकडीके पट्टीमें उपरका मंत्र नामके साथलिखे, पीछे उसका (उसपट्टीका संपुटकरके काले डोरेसे लपेटकरके एकान्तमे रखे ( अथवा उसपट्टीको काले डोरेसे लपेटनेके बाद उस लकडीको मही लगाकर गोला बनावे फिर बहेडाकी लकडीकी अग्निकरके उस गोलेको तपावे. आऊलपुष्पसे १०८ जाप रोज करे इतिद्वितिय पुस्तके) काले फुलसे रोज जाप करे. जिसका नाम अंदर लिखा है उसको उद्यमपूर्वक लक्ष्य में लेकर जाप करेतो. | उसको सात दिनके अंदर ज्वरकी बाधा होती है. उस ज्वर मुच्छितको शकेन्द्रभी रोगरहित नही करसकता ओर जबतक मंत्राक्षरको दुधसे न धोया जावे तबतक ज्वर नहि उतरता. ॐ अमृतोद्भवे देवि, वर्षयवर्षयामृतम् । इत्यादिकेन मंत्रेण, वन्हिः स्तोभोविधीयताम् ॥ १६ ॥ भाषा - मंत्रोद्धारः - ॐ देवि अमृतोद्भवे अमृतं वर्षय वर्षय खाहा अग्निस्तंभनका मंत्र है. ॐकारं मध्यसंस्थानं, मायाबीजेन वेष्टितम् । अमुकं देवी कुरुकुल्ले, कुरु स्वाहेतिवोच्चरेत् ॥ १७ ॥ षट्कोणं यंत्रमालिख्य, मुलमंत्रेणगर्भितम् । अष्टोत्तरशतं जप्त्वा, तत: कर्मसमाचरेत् भाषा - ॐकारको न्हीँ कारके मध्य में लिखके पटकोणके है कोन में कुरुकुल्ले स्वाहा यह मुलमंत्र लिखे. पीछे ॐ नहीँ For Personal & Private Use Only ॥ १८ ॥ お飲み तृतीयोऽ धिकारः ३ ainelibrary.org

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