Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 18
________________ विद्यारत्न महानिधी Jain Education SARKARYA भाषा - इस फल देता है. मंत्र के प्रभाव से मनवंछितवस्तु प्राप्त होती है. यहमंत्र कल्पवृक्षके समान रोज नाना रूपका पाशं पाशयुतं शुन्यं, विषघ्नं मंगलं तथा । कल्याणं चेति मंत्रोयं, पार्श्वयक्षोभिधानतः ॥ १४ ॥ अर्थस्वयं विचार लेना. देयोयं भक्तियुक्ताय, सुर्यचंद्रोपरागयोः । दीपोत्सवेथवा मंत्रो, रहस्सु गुरुपूजया ॥ १५ ॥ तेनापि भक्ति युक्तेन, शुद्धचित्तेन संततम् । मायामदवियुक्तेन, क्रोधलोभमदोज्झिना ॥ १६ ॥ सत्यवाक्यप्रदानेन, गुरुपादोपसर्पिना । एकभक्तोषितेनैव, ब्रह्मचर्यविधायिना ॥ १७ ॥ भाषा - शुद्ध चित्तवाला, मायामद करके रहित, क्रोधलोभ अहंकार शुन्य, सत्यवादी, गुरुसेवामें तत्पर, ब्रह्मचारी, एकभुक्त याने एकाशन करनेवाला ऐसे भक्तियुक्त शिष्यको सुर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, तथा दीपमालाके दिन एकान्त में मंत्र देना, शिष्यने गुरुकी पुजा करनी चाहिये. सहस्त्रैकस्यजापेन, षण्माषान्प्रतिवासरम् । श्रीमत्पार्श्वजिनेन्द्रस्य, गुरुपूजापुरस्सरम् ॥ १८ ॥ ध्यातव्यंसुधियानित्यं, मंत्रोयममरार्चितः । सिद्धियाति ततः तस्य, महासत्वशिरोमणेः ॥ १९ ॥ For Personal & Private Use Only * द्वितीयोऽ धिकारः २ sinelibrary.org

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