________________
विद्यारत्नमहानिधी
Jain Educatio
ब्रह्मत्रिलोक कमला, मूलवीजं त्र्यंततः, कलिकुण्डदण्डाय ही, नमो मंत्राक्षराणिच ॥ २५ ॥ भाषा — ब्रह्म-ॐ त्रिलोक- ही कमला- श्री मंत्रोद्धारः - ॐ ही श्री कलिकुंडदंडाय ँही नम :
रवि संख्यसहस्राणि, प्रसूनैर्जातिसम्भवैः । पयपुर्णालुकामध्ये, जापं कुर्याजिनाग्रतः ॥ २६ ॥ सिद्धिं याति ततो मंत्र, पार्श्वस्यैवप्रभावतः । कामदोमोक्षदश्चैव, भक्तिभाजां शरीरिणाम ॥ २७ ॥
| भाषा - सुवर्णके कटोरे में दुध भरकर उसमें भगवानकी मूर्ति सन्मुख स्थापन करके चमेलीके ताजे फुलोंसे बारा हजार जाप करना जिससे भक्तजनोंको पार्श्वनाथ प्रभुकी कृपासे कामको और मोक्षको देनेवाले ईस महामंत्र की सिद्धि होती है. रक्षो यक्षोरगत्याघ्र - व्यालानलगरादयः । नापकर्तुमलं तेभ्यो, येचास्यशरणंगताः ॥ २८ ॥
| भाषा - जो पुरुष इसमंत्रके शरणमें जाता है उसका राक्षस, यक्ष, सर्प, वाघ, हाथि, अग्नि, जहर आदि कुछ बिगाड नहीं सकता.
वन्हिव्याधिपयोनिधि, हरिकारफणिचौरसंयुगादीनाम् । भयमखिलमस्यसंस्मृति, मात्रादपि देहिनांत्रजति ॥ २९ ॥ भाषा - मंत्रवादीको ईसमंत्रके स्मरणमात्रसे अग्नि, व्याधि, समुद्र, सिंह, हाथि, सर्प, चोर आदिका भय नाश होता है. व्यन्तरविषविषमज्वर–दुष्टग्रहशाकिनीप्रमुखदोषाः । दुरे तस्य वहन्ते, यस्यायं भवति हृदयस्थः ॥ ३० ॥
For Personal & Private Use Only
द्वितीयोऽ धिकारः १
१२
Painelibrary.org