Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 17
________________ द्वितीयोऽ धिकारः २ वश्या भवन्ति कामिन्यो, भ्रश्यत्परिहितांबरा । आजन्मदास्यभावंच, भजन्ते नात्र संशयः ॥ ८॥ विद्यारत्न भाषा-रानी महारानी तथा कोई भी स्त्री कपडेके भानबगर वश होतीहै. तथा जन्मपर्यंत दास्यभावका निसंदेह महानिधी वीकार करती है. यद्यत्कामयतेसर्वं, तत्सद्य तस्य जायते । मंत्रराजप्रसादेन, फलमस्य न संशयः ॥९॥ भाषा-मंत्रवादी जिस जिस वस्तुकी कामना करताहै वह सर्ववस्तु उसको प्राप्त होतीहै. मंत्रराजकी कृपासे * निसंदेह वात है. प्रणवं पार्श्वनाथाय, मायावीजं तथैवच । एवं लक्षप्रजापेन, मंत्रोयं सिध्यति स्फुटम ॥ १०॥ मंत्रोद्धारः-ॐ पार्श्वनाथाय ही, यहमंत्र एक लक्ष जापकरनेसे सिद्ध होताहै. ___ नारीनां पुरुषानांच, भुपतीनां विशेषतः । आराध्यमानः यत्नेन, दशाहेन वशंकरम् ॥ ११ ॥ सहस्रमेकं यत्नेन, दशाहं प्रतिवासरम् । पदभ्रष्टो जपेद्यस्क्त, ससद्यो लभतेपदम् ॥ १२ ॥ भाषा-ईस मंत्रकी यत्नपुर्वक आराधना करनेसे पुरुष या स्त्री तथा विशेष करके राजा वश होता है, प्रतिदिन एक हजार जाप दशदिन करनेसे पदभ्रष्ट हुवा हुवा पुरुष वही पदवीको प्राप्त होता है. बांछितानिचजंतुनां, फलान्यस्यप्रभावतः। कल्पद्रोरिवजायन्ते, नाना रूपानि नित्यशः ॥ १३ ॥ Jain Education rational For Personal Private Use Only rainin.jainelibrary.org

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