Book Title: Vidyaratna Mahanidhi
Author(s): Bhadraguptasuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ विद्यारत्न महानिधी Jain Education t *** भाषा - त्रिभुवनस्वामिनी ( मानुषोन्तरपर्वत उपर रहनेवाली सहस्रभुजाको धारण करनेवाली सूरिमंत्रके दुसरे पीठकी अधिष्ठात्री है) देवी इसमंत्रकी अधिष्ठात्री है. इस विद्याका स्मरणकरनेवाला त्रिभुवनस्वामित्वको प्राप्त करता हुवा | मोक्ष सुखको प्राप्त करता है. लक्षैकस्यप्रजापेन, प्रसुनैः जातिसंभवैः । दशांशहोमतोयाति, सिद्धिं विद्या प्रसाधिता ॥ २० ॥ भाषा - चमेली के ताजे फुलसे एक लक्ष जापकरके दशांश होम करनेसे विद्या सिद्ध होती है. इति दशपूर्वधराचार्य श्री भद्रगुप्तविरचितायां श्री विद्यारत्नमहानिध अनुभवसिद्धमंत्र द्वात्रिंशिकायां सर्वकर्मकर वर्णनोनाम प्रथमोधिकारः अथातः संप्रवक्ष्यामि, वश्याकर्षणमुत्तमम् । येनविज्ञानमात्रेन, सुखसंपद्यतेऽद्भुतम् ॥ १ ॥ भाषा - अवमें वश्य, आकर्षणकी उत्तमसिद्धिदायक विधिको कथन करूंगा जिसके विज्ञानमात्रसे अद्भुत सुखसंपदा प्राप्त होती है. प्रणवं माययायुक्तं, कमला युतमेवच । कलिकुंडयुतं चापि, स्वामिनेवशमानय ॥ २॥ पुनरानय स्वाहेति, मंत्रपार्श्वजिनाग्रतः । त्रिरात्रंसाधितैः पुष्पै, रयुतेनवशंवदः ॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only प्रथमो धिकारः १ Minelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50