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विद्यारत्न महानिधी
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दीपेंकम सवासेर घृत भरकर चकमकसे ज्योति प्रगटावे. एक उत्तर साधकको साध लेकर बैठे, पुर्ण ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे. देव तथा गुरु प्रति भक्तिरखे, उत्तर साधकको असन, पान, वस्त्र, आभरण इत्यादिसे भक्ति पुर्वक सन्मान करें प्रत्याख्यान, अष्टम, आचामाम्ल वा एकासन दुध चावलसे ७१११ तथा २१ दिनकरे. सर्वथा मौन रहे. सवालक्ष [१२५००० ] जापकरे दशांश आहूती देवे. पद्मासनमें बैठके जाप करे वहांपर स्त्री बाल वृद्ध ईत्यादि प्रवेश न करे स्त्री मुख न देखे देह वस्त्र इत्यादि शुद्ध रखें, दधि, दुग्ध, शर्करा, घृत, मधु, अखरोट, बदाम, पिस्ता, निमजा, चिरोंजी, खारक, सिंघोडा, श्रीफल, खीरनी, द्राक्ष, इक्षुखंडा, और, कर्पुर, कस्तुरी, अंबर, लोवान, गुगल, श्रेत, रक्त, चंदन, पीतपट्टकुल, जब, प्रियुंग, गोरोचन वरुणकाष्ट, मलियागिरी चंदन, कालंबरी, पुष्पः - कमल, मोगरा, चंपा केवडा, केतकी, मोलसरी, सेवंती, जासवंद, [ जासुद ] मखा, नागरवेलीपत्र, अशोकपत्र, पत्रशटम्, सर्वजातिके फुल इत्यादि सामग्रीसे यंत्रराजकी पुजाकरे आहूती देवे.
उत्तर दिशा सन्मुख जापकरे, आसन, वस्त्र, माला वगैरे पीतलेवे पीतपुष्पसे जापकरे, पीतनैवेद्य लेवे तथा पीतध्यान करनेसे लक्ष्मी प्राप्त होती है.
पुर्वदिशा सन्मुखजापकरे सर्वसामग्री श्वेतलेवे ध्यानश्वेत करे, तो सद्गति, वंशवृद्धि, प्रजावश्य, सर्व जन वश होवे. ' / पश्चिम दिशा सन्मुख जापकरे सर्व सामग्री लाललेवे रक्तध्यान करनेसे उपद्रव टलताहै ओर जगत वशहोता है. दक्षिण दिशा जापकरे तो सर्व सामग्री कृष्णलेवे क्रुरध्यान करे, तथा कृष्ण धतुरेकाफुल, अर्कफुल कालाकरके खल, तिल, कपासकी आहुतिदेवे. अरीठा या बेहडाकी लकडी, स्मशानमृत्तिका वरुणछाल, चउवटाकिधुली, घूक
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प्रथमो
धिकारः १
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