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प्रथमो
|धिकारः१
ब्रह्म-त्रिलोक-कमला, अकारो नभसोक्षरम् । रेफविन्दुकलाक्रान्तं, नमश्च मंत्रमुच्यते ॥ ५॥ विद्यारत्न
भाषा-ब्रह्म-ॐ त्रिलोक-ही, कमला-श्री, अकार-अ, नमसोक्षरम्-ह, रेफविन्दुकलाक्रांत-ह मंत्रोद्धारः ॐ ही महानिधी
श्री अर्हनमः-यह सर्वज्ञसदृश मंत्र है.
पीतं स्तम्भेऽरुणं वश्य, क्षोभने विद्रमप्रभम् । कृष्णं विद्वेषणे ध्याये-त्कर्म घाते शशिप्रभम् ॥६॥ Re भाषा-स्तंभन करने में पीत ध्यान, वशिकरणमें रक्त ध्यान, क्षोभन करने में प्रवालसदृश ध्यान, विद्वेषणमें कृष्ण
ध्यान, कर्मनिर्जरामें चन्द्रमाके सदृश ध्यान करना चाहिए. । द्वादशसहस्त्रजापे, दशांशहोमेन सिद्धिमुपयाति । मंत्रो गुरुप्रसादात्, ज्ञातव्य स्त्रिभूवने सारः॥७॥ |
भाषा-बाराहजार जाप करके उसका दशांश आहूति देकर गुरुमहाराजकी कृपासे मंत्र सिद्ध होताहै जो त्रिभुवनमे * सार रूप है.
(प्रथम चंद्रबल तथा ग्रहबल देखके फिर सुनक्षत्र (रवि पुष्ययोग, सिद्धियोग, अमृतसिद्धियोग, नवरात्रि ke आदि) में कार्य परत्वे यथा दिशामें शुद्ध भुमिमें सवागज प्रमाण भुमि खोदे अशुद्ध वस्तु (हाड रोमवगैरा) कीनिवृति # करे पिछे मट्टीको शुद्ध जलसे लिंपन करके प्रतिष्ठा करावे. चार दिशा गज प्रमाण सार्धहस्त अधोमुख, दीप, धुप, पुष्प * कुंकुमका छाटादेना, कुंड षट्कोन बनाना, पीछे खदिरांगारसे कुंड भरे, अखंड धुप दीप पुर्ण कलशकी स्थापना करे,
कुमारीकन्याके पास हिरवनकी कपासीका सुत कताकर २१ सरकाडोरेकी अष्टगंधसे पुजा करके फिर बत्ती बनावे.
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