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छंद मवावलिप्तकपोल। जो जन अजित जिनेश जजै हैं, मनवचकाई।
ताकों होय आनंद ज्ञान सम्पति सुखदाई॥ पुत्र मित्र धन्यधान्य सुजस त्रिभुवनमह छावै। सकल शत्रु छय जाय अनुक्रमसों शिव पावै ॥ १७ ॥
___ इत्याशीर्वादः । श्रीशंभवनाथ पूजा।
छंद मवावलिप्तकपोल। जय शंभव जिनचंद सदा हरिगनचकोरनुत ।
जयसेना जसु मातु जैति राजा जितारसुत ॥ तजि ग्रीवक लिये जन्मनगर सावत्री आई।
सो भवभंजनहेत भगतपर होहु सहाई ॥१॥