Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 170
________________ in छंद अष्टपदी (यानतरायफ़त नंदीश्वराष्टकादिक अनेक रागोंमें भी बने हैं)। नीरोदधिसम शुचि नीर, कंचनमृग भरों। प्रभु वेग हरो भवपीर, यातें धार करों॥ श्रीवीरमहा अतिवीर सन्मतिनायक हो। जय वर्द्धमान गुणधीर सन्सतिदायक हो ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ मलयागिरचंदनसार, केसरसंग घसा। प्रभु भव आताप निवार, पूजत हिय हुलसा ॥श्री०॥२॥ ॐ ती श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवनापविनाशनाय गंदनं निर्वपामीति० ॥२॥ तंदुलसित शशिसम शुद्ध, लीनों थार भारी। तसु पंज धरों अविरुद्ध, पावों शिवनगरी ॥श्री०॥३॥ ॐ ही श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपशाप्तये अशतान् निर्वपामीति०॥३॥ सुरतरुके सुमन समेत, सुमन सुमनप्यारे । statutterstottattatutteketstatutettitutatutetotstectures - min d a

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