Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 175
________________ -to-titut 94 dattattatototattitutetstotstetstetstetatituteketstekxetti धत्तानन्द । श्रीवीरजिनेशा नमितसुरेशा, नागनरेशा भगतिभरा। 'वृदावन ध्यावै विघननशावै, वांछित पावै शर्म वरा ॥१५॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय महाधं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दोहा-श्रीसनभतिके जुगलपद, जो पूजै धरि प्रीत। वृदावन सो चतुरनर, लहै मुक्तिनवनीत ॥१६॥ इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्। श्रीसमुच्चयअर्घ । तोटक–सुनिये जिनराज त्रिलोकधनी तुममें जितने गुन हैं तितनी॥ कहि कौन सकै मुखसों सब ही। तिहिं पूजतु हौं गहि अर्घ यही ॥१॥ ___ ॐ ह्रीं श्रीवृपभादि वीरान्तेभ्यो चतुर्विशतिजिनेभ्यः पूणा निर्वपामी स्वाहा॥ फवित्त । रिखवदेवकों आदिअंत, श्रीवरधमान जिनवर सुखकार । तिनके चरनकमलको पूज, जो प्रानी गुनमाल उचार ॥ | ताके पुत्रमित्र धन जोवन, सुखसमाजगुन मिलै अपार । tetat to** titect terttitudentstotketaketiutststatest

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