Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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सुरपदभागभोगि चक्री ह, अनुक्रमलहै मोच्छपद सोर ॥२॥
इत्याशीर्वादः। कविनामग्रामादिपरिचय। मनाइरन । काशीजीमें झाशीनाथ नन्हूंजी, अनंतराम, मूलचंद, आढतसुराम आदिजानियौ।सज्जन अनेक तहां धर्मचंदजीको नंद,
दावन अग्रवाल गोल गोती बानियो॥ ताने रचे पाठ पाय मन्नालालको सहाय, वालवुद्धि अनुसार सुनो लरधानियौ । यामें भूलचूक होय ताहि शोध शुद्ध कीज्यो, मोहि अलपज्ञ जानि छिमा उरआनियो|
॥ इति श्रीमविरवृन्दावनकृत श्रीवर्तमानजिनचतुर्विंशति जिनपूजा समाप्त ॥ संगत् महासौ पचहत्तर १८०५ फार्तिककृष्ण अमावस्या गुरुवारको यह पुस्ता पूर्ण भया । लिखितं वृन्दावनेन निजपरोपकारार्थम् ।
यमस्तु । मंगलामस्तु । शुभम्भूयात् ।
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