________________
-to-titut
94
dattattatototattitutetstotstetstetstetatituteketstekxetti
धत्तानन्द । श्रीवीरजिनेशा नमितसुरेशा, नागनरेशा भगतिभरा। 'वृदावन ध्यावै विघननशावै, वांछित पावै शर्म वरा ॥१५॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय महाधं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दोहा-श्रीसनभतिके जुगलपद, जो पूजै धरि प्रीत। वृदावन सो चतुरनर, लहै मुक्तिनवनीत ॥१६॥
इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।
श्रीसमुच्चयअर्घ । तोटक–सुनिये जिनराज त्रिलोकधनी तुममें जितने गुन हैं तितनी॥ कहि कौन सकै मुखसों सब ही। तिहिं पूजतु हौं गहि अर्घ यही ॥१॥ ___ ॐ ह्रीं श्रीवृपभादि वीरान्तेभ्यो चतुर्विशतिजिनेभ्यः पूणा निर्वपामी स्वाहा॥
फवित्त । रिखवदेवकों आदिअंत, श्रीवरधमान जिनवर सुखकार । तिनके चरनकमलको पूज, जो प्रानी गुनमाल उचार ॥ | ताके पुत्रमित्र धन जोवन, सुखसमाजगुन मिलै अपार ।
tetat to** titect terttitudentstotketaketiutststatest