Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ sitatetstatstitutskeletetattatottttttter ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय महाधंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ फवित्त..पारसनाथ अनाथनिके हित, दारिदगिरिकों वज्रसमान । सुखसागरवर्द्धनको शशिसम, दवकषायको मेघमहान। तिनको पूजै जो भविप्रानी, पाठ पढ़ अति आनंद आन। सो पावै मनवांछित सुख सब, और लहै अनुक्रमनिरवान ॥ १७॥ ___ इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।। স্বীশ্বালালিঙ্গা। intentitatutetitutstototststatutotsts.totato.tatots.t.totstototokta. - मत्तगयंद-श्रीमतवीर हरै भवपीर, भरै सुखसीर अनाकुलताई। केहरिअंक अरीकरदक, नये हरिपंकतिमौलि सुआई॥ मैं तुमको इत थापतु हौं प्रभु, भक्ति समेत हिये हरखाई। हे करुणाधनधाकर देव, इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥१॥ अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॥२॥ अन मम सन्निहितो भव भव । वपट् ॥ ३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177