Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 168
________________ पू -ttetbast-ttits333332:32 भविसारंगको जलधर उदार ॥५॥ हरिगिरिवरपर अभिषेक कीन । झट तांडव निरत अरंभदीन ॥ बाजन बाजत अनहद अपार । को पार लहत वरनत अवार ॥६॥द्गमदूम द्वमगम द्वम दूम मृदंग। घघनन नननन घंटा अभंग ॥छमछम छमछम छम छुद्रघंटा टमटम टमटमटकोर तंट ॥ ७॥ झननन झननन नूपुर झकोर । तननन तननन नन तानशोर ॥ सनननन ननननन गगनमाहिं । फिरिफिरिफिरिफिरिफिरिकी लहांहिं॥ ताथेइ थेइ थेइ थेइ धरत पाव । चटपट अटपट झट त्रिदशराव ॥ करिके सहस्र करको पसार । बहुभांति दिखावत भाव प्यार ॥६॥ निजभगति प्रगट जित करत इंद्र । ताको क्या कहिं सकि हैं कविंद्र ।। जहँ रंगभूमि गिरिराज पर्म । अरु सभा ईश तुम देव शर्म ॥१०॥ अरु नाचत मघवा भगतिरूप । बाजे किन्नर बजत भनूप ॥ सो देखत ही छवि बनत वृ'द । मुखसो केसे बरनै अमंद ॥१॥ धनघड़ी सोय धन देव आप। धन तीर्थंकर प्रकृती प्रताप ॥ हम तुमको देखत नयनद्वार । मनु आज भये भवसिंधु पार ॥१२॥ पुनिपिता सौपि हरि स्वर्गजाय । तुम सुखसमाज भोग्यौ जिनाय ॥ फिर तपधरि केवल शानपाय । धरमोपदेश दे शिवसिधाय ॥१३॥ हम सरनागत आये भवार । हे कृपासिंधु गुन अमलधार ॥ मो मनमें तिष्ठहु सदाकाल । जबलों न लहों शिवपुर रसाल ॥१४॥ निरवान थान सम्मेद जाय । “वृदावन' बंदत शीसनाय ॥ तुम ही हो सब दुखवंद हर्न । तातें पकरी यह चर्नशन ॥१५॥ जयजय सुखसागर, त्रिभुवन आगर, सुजस उजागर, पार्श्वपती॥ वृन्दावन ध्यावत, पूजरचावत, शिवथलपावत, शर्म अति ॥ १६ ॥ xxxx333333333333333333&७७

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