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शिववादिन धारन है । अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥१९॥ फिर आप अघाति विनाश सर्व। शिवधामवि शित कीन तवै॥ तकृत्यभू कृप्र जगतारन हैं। अरनाथ नमों सुख कारन हैं ॥१२॥ अब दीनदयाल दया धरिये। मम कर्म कलंक सबै हरिये ॥ तुमरे गुनको कछु पार न हैं । अरनाश नमों सुखकारन हैं ॥१॥
घत्तानंद छन्द (मात्रा ३१) जय श्रीअरदेवं, सुरकृतसेवं, समताभेवं, दातारं । अरिकर्मविदारन, शिवसुखकारन, जय जिनवर जगत्रातारं ॥१४॥ इति श्रीअरनाथजिनेन्द्राय पूर्णाध निर्वपामीति स्वाहा॥
छन्द आर्या , मात्रा ६०) अरनिनके पदसारं, जो पूजै द्रव्यभावसों प्रानी। सो पावै भवपारं, अजरामर मोच्छथोन सुखखानी ॥ १५ ॥
इत्याशीर्वादपरिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।
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