Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 159
________________ थापि हो वार त्रै शुद्ध उच्चार त्रै, शुद्धताधार भोपारक लेनकी ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिन ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ।। अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् । अष्टक। दाता मोच्छके श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता० टेक॥ निगमनदी कुश प्राशुक लीनौं, कंचनभृग भराय । मनवचतनतें धार देत ही, सकल कलंक नशाय ॥ दाता मोच्छके, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ हरिचन्दनजुत कदलीनंदन, ककुमसंग घसाय । विघनतापनाशनके कारन, जजौं तिहारे पाय ॥ दाता०॥२॥ ॐ हीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ पुण्यराशि तुमजस सम उज्जल, तंदुल शुद्ध मँगाय । अखय सौख्य भोगनके कारन, पुंज थरों गुनगाय॥दा॥३॥

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