Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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प्रकाशी । जै चतुरानन हनि भवफांसी ॥ त्रिभुवनहित उद्यमवंता । जै जै जै जै नमि भगवंता॥४॥जै तुम सप्ततत्त्व दरशायो । तास सुनत भवि निजरस पायो॥ एक शुद्र अनुभवनिज भाखे। दोविधि राग दोप छै आखे ॥५॥ श्रेणी है नय वै धर्म । दों प्रमाण आगमगुन शमं ॥ तीनलोक त्रयजोग तिकालं। सल्ल पल्ल त्रय वात बलाल ॥६॥ चार बंध संज्ञागति ध्यानं । आराधन निछेप चउ दानं ॥ पंचलन्धि आचार प्रमादं । बंधहेतु पैताले सादं ॥ ७॥ गोलक पंचभाव शिव भौने । छहो दरव सम्यक अनुकौनें ॥ हानिवृद्धि तप समय समेता। सप्तभंगवानीके नेता ॥ ८॥ संजम समुद्घात भय सारा । आठ करम मद सिधगुनधारा ॥ नवों लवधि नवतत्त्व प्रकाशे। नोकपाय हरि तूप हुलाशे ॥ ६॥ दशों वन्ध के मूल नशाये । यों इन आदि सकल दरशाये ॥ फेर विहरि जगजन उद्धारे । जै जै ज्ञान दरश अविकारे ॥१०॥ औ वीरज जै सूच्छमवंता। जै अवगाहन गुन वरनंता । जैजै अगुरु लघू निरवाधा। इन गुनजुत तुम शिवसुख साधा ॥ ११ ॥ ताकौं कहतथके गनधारी तौ को समरथ कहै प्रचारी ॥ तातें मैं अब शरने आया । भवदुख मेटि देहु शिवराया ॥१२॥ वार वार यह अरज हमारी। हे त्रिपुरारी हे शिवकारी॥ परपरनतिको वेगि मिटावो । सहजानंदसरूपमिटावो ॥ १३॥ वृन्दावन जांचत शिरनाई। तुम मम उर निवसौ जिनराई ॥ जबलों शिव नहिं पावों सारा । तवलों यही मनोरथ म्हारा ॥१४॥
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