Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 135
________________ ॐ ही मार्गशीर्षशुक्लचतुर्दश्यां निःक्रममङ्गलमण्डिताय श्रीअरनाथाजि नेन्द्राय अर्घ नि० ॥ कातिक सित द्वादसि अरि चुरे । केवलज्ञान भयो गुन पूरे॥ समवसग्नथित धरम बखाने । जजत चरन हम पातक भाने ॥४॥ ___ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्लद्वादश्यां शानमंगलमण्डिताय श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय अधं नि० चैत शुकल ग्यारस सब कर्म । नाशि वास किय शिव-थल पर्म। निहचल गुन अनन्त भंडारी। जजों देव सुधि लेहु हमारी ॥ ५ । ___ॐ हीं चैत्रशुक्ल कादश्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥५॥ जयमाला दोहा छंद ( जमकपद तथा लाटानुबंधन।) बाहर भीतरके जिने, जाहर अर दुखदाय । ता हर कर अरजिन भये, साहर शिवपुर राय ॥ १ ॥ राय सुदरशन जासु पितु, मित्रादेवी माय।

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177