Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya
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अजर अमर अहरं अडरं । अपरं अभर अशरं अनरं ॥ अमलीन अछीन अरीन हने । अमतं अगतं अरतं अधने ॥ ६॥ अछुधा अतृषा अभयातम हो। अमदा अगदा अवदातम हो । अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना। अतल अशलं अनअंत गुना ॥७॥ अरसं सरसं अकल सकलं । अवचं सवचं अमनं सबलं ॥ इन आदि अनेकप्रकार सही। तुमको जिन संत जपें नित ही ॥ ८॥ अब मैं तुमरी शरना पकरी। दुख दूर करो प्रभुजी हमरी ॥ हम कष्ट सहे भवकाननमैं। कुनिगोद तथा थल आननमैं ॥६॥ तित जामनमर्न सहे जितने। कहि केम सकै तुमसों तितने ॥ सुमहरत अन्तरमाहिं धरे । छह नै त्रय छः छहकाय खरे ॥ १०॥ छिति वह्नि वयारिक साधरनं । लघु थूल विभेदनिसों भरनं ॥ परतेक वनस्पति ग्यार भये। छहजार द्वादश भेद लये ॥ ११॥ सब द्वै त्रय भू षट छःसु भया। इक इन्द्रियकी परजाय लया ॥ जुग इन्द्रिय काय असी गहियो । तिय इन्द्रिय साउनिमें रहियो ॥ १२ ॥ चतुरि दिय चालिस देह धरा। पनईदियके चववीस वरा ॥ सब ये तन धार तहां सहियो। दुखघोर चितारित जात हियो ॥ १३ ॥ अव मो अरदास हिये धरिये। सुखदंद सवै अव ही हरिये ॥ मनवंछित कारज सिद्ध करो। सुखसार सबै घर रिद्ध धरो ॥१४॥
धत्तानंद छंद। जै विमलजिनेशा नुतनाकेशा, नागेशा नरईश सदा॥

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