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छंद रूपचौपाई। जय जय जिन भविजनहितकारी । जय जय जिन भवसागरतारी ॥ जय जय समवसरन धनधारी । जय जय वीतराग हितकारी ॥२॥ जय तुम साततत्व विधि भाख्यौ। जय जय नवपदार्थ लखि आल्यौ ॥ जय पटद्रव्यपंच जुत काया । जय सबभेद सहित दरशाया ॥३॥ जय गुनथान जीव परमानो। जय पहिले अनंत जिय जानो ॥ जय दूजे शासादनमाही। तेरहकोडि जीवथित आंहीं ॥४॥जय तीजे मिश्रितगुणथाने । जीव सु बावनकोडि प्रमाने जय चौथे अविरति गुन जीवा । चारअधिक शतकोड़ि सदीवा ॥५॥ जय जिय देशवरतमें शेषा । कौड़ि सातसौ हैं थिति वेशा॥ जय प्रमत्त पटशून्य दोय वसु । पांच तीन नव पांच जीव लसु ॥६॥ जय जय अपरमत्तगुन कोरं । लच्छ छानवै सहस बहोरं । निन्यानवे एकशत तीना। ऐते मुनि तित रहहिं प्रवीना ॥७॥ जय जय अष्टममें दुइ धारा । आठशतक सत्तानों सारा ॥ उपशममें दुइसो निन्यानों । छपकमाहिं तसु दूने जानों ॥८॥ जय इतने २ हितकारी। नवे दर्श जुगश्रेणी धारी ॥ जय ग्यारे उपशममगगामी । दुइस निन्यानों अध आमी ॥६॥ जय जय छीनमोह गुनथानों। मुनिशनपांचअधिक अट्ठानों ॥ जय जय तेरहमें अरहता। जुग नभ पन वसु नव वसु तंता ॥१०॥ एते राजतुं हैं चतुरानन । हम बंद पद थुतिकरि आनन ॥ है अजोग गुनमें जे देवा । पनसोठानों करों सुसेवा ॥११॥ तित तिथि अइउल
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