Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Jaysundar
Publisher: Sanchor
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कर्मयधाताई ॥१४ देतगवनजीववाचनाऽभिकर। वाचनाघकानिर्जराकर साम्रतणाअनुज्ञानिरंतरमवाकरीश्रागान अंकारोबायाश्यावायगाएगासातजीवण वायणायागनिया गयशसुयस्मयात्राणासायामयाणा नारहितवचनवद्व
तीकरवर्मअवलंबई जावधर्मतीर्घश्रवलंबन, महामोटीकमताणीनिजागतकंचा सूर वसुयस्मश्रणासायणावहामाणमांतिवमंशावलंबशनिबधमग्रवालबमाणमहाणिकारमहापद्य अवसानजाई ।।२१० देसगवनपतिमबनाजीवमिजकरई। प्रनिष्टबमामूत्र अर्धतेविनिनिर्मलयागमेकरं। अनकानामोहनीकर्मदयघात। वसाशासवाश्यापडियायायामासायटिपुरावयासतदुनयाईविक्षसाशकंरवामाहरण बदई॥२५ हेलगवनूजावयुणवकरीमिकर गुहावक जीवकरमस्कारमयजावअनदारसंस्कारलधिकपड़ाव छकम्मबिंदशाश्यायरियायामाता परियाणयागणवेशाजायशवंजगलचित्रया २॥ हेतगवनवजावसिमंकर। जावयानुदायलाईकम्बायकार्मची सातकर्मणीप्रतिबंधफेमी। राशाशप्राणहाराणनातावाश्रणापहायणाजयवधानमनकामयगडावधगियबंधागवानसि शनिबंधकर अनबउँकालच्छतिल्यकालस्यायनीकरई।
अतशतकर्मपतिनावसटीलामंदरसकर) दिल्लबंधाणबदायकाशदादकालहियाारसम्मकान डियासंगकारातियाणासावाटेमंदाणुसाबानयंकरे अनश्वकपदवाटालाअल्पदेशकई अनस्यायुधमकदाचितबाबई तेनबा असानावदनीयकर्म बलीरअनंनदा शबजयण्मयाधारण्यासगाऽयकारामबाणकामंसियबंधामियमोबंधशमायावयणिचंचणकामे

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