Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Jaysundar
Publisher: Sanchor
View full book text
________________
नइत्यागि तय कर ! बुजीवांत का लिमरानसई सम्य। सावनावश चालियोगं सादनार बबिताना मोहावनाएं या सूरीला बनाई।। रामप साचनदसनादिक विरारक कस मन विराधक। श्रततिजाइन
A जीव मिध्यादर्शन न विष ग्रास अनइंनी याणासहित करें। जीव विणा सका। एवजी मर गया मते जीवनबोधसम किच
UN कंदणमा लिनेगे कि छिमिये [माह मासु र संचाए या उंडगाई | मशशा मिविरादयादति
यामास श्वासनियागादिं सगा। प्रयामशती वा तसिंधु होना ही समस
जुजावीतराग ऊपर नाचन वि रक्तनीयापारहित शुक्लेशा संयुवावजे जी मरभणं तेजी बोसिम्यकक्स बन६॥ ६य / जेजीव मिम्याद वर्शन नई विषयाश
५६
स्त्राप्रति श्राणकाल समिति । श्य समरेतिका बाखल होत सिंनादाबाद।॥ ६॥ मिचाद संगोरता
ननीयाणासहित । उनले सहितं । एवशंशा विजीच मरणयां ! सनियारण कसले मामागाट | इटके मर तिडीबाट ईत्र्यासक्त नाव सहित जनवधनकरते जार मिष्यादिकमन्तर हित रागादिक रित शाजिवियां कर तिलक्षणं मला संकलियाँ
मई) जीवनबोधसम्यक् ६१ जीव तिन वचननदिय सिंहनाद ॥ ६२॥ वियच्च क्लेवारहित) तेन्जीन संसार जीश्री वीरांगनांवचननजी तोही तिपरिज्ञसंसारादेशो वालम दि ते बायका कघणी वार बालमरण करीमर । काममरणिकरी मरई । एकेंद्रियना से धर्म नोमन डांग तेजीद ॥ ६३ घमघांना जागुर्वादिकमा रमाकाममरणाचदा वर्द्धरण। मरिहंतितराया। जिवनया गति॥६२॥ बागमति ज्यते हन समाधिनोपजावा हारगुणायादी गुणना बोलण हा २ पदकारणकरी चाल ती चार परंपरा सलिलवा योग्य व जेजीच की मकघादिक नीप्रसंसाकर मचे नागा समाहिमुपाये गायगुणगंगा ही। रारा कारणाएं। रिशालायासानं ॥ ६॥ कंदेशका कश्या આપર આલા હવામ
ग्रीन

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230