________________
तथा || स्वाध्याय॥४॥ ध्यान॥१॥ कायादादाचर्य ।। वो सिखों । यं । यत्र्त्यतश्तया लोण / परिक्रमणादिकप्रायश्वितः ॥ जेलिक
ताह मच दिवसग्गा। रासायझिंगराताव। 20 मालायगा रिहाईयां पायत्रिनंदम विदाऊ
सम्यग् आचई प्रकार | तेप्रायश्चित कहाई । गुरुबा श्रावनादेषी ल्फ स्थान की जई। एविनय य स दाघ जो माई। बस का गुर्वादिकप्रतिन निरवद ईसमो पाय चित्रतमादियं शांजलि करणं तदचामल दायां गुरुन त्रिताधम स्कू साचि
नावश्रूषा की विनय ३२व्याचार्यवपाध्याय घेर नबसी ४ गिलाला शिष्प६ साहमीय कलगुण संघ यसप्रति वेयावज्च्यधात्र्मक्ति करने
एसवियादि
यरियामाईया चयावचे मिद
सविशदा ग्रासवगदाधाम) (क्यावचैतमा दिया तदनंग शिबंध / धर्मकघानूंक दिए पांच प्रकारे स्वाध्याय । सुसमा
ननिंघ
पुस्तिका दिकनुवाच। गुरुक दाता परिया
7 दाधमक दासाचा लावावयहोरा
ध्यानवि
हि संतोष पामयुक्तच्या शिरोऽध्यान बांकी धर्म हासते ध्यान कह/सूहं बस कंसार दिहं के लिया हावाका सुममा दिए धमक्का का दावा सासरा वा ऊन निस्क दिक व्यायाम कर। निश्व का या वामिराविशे काय कस करते व बोला १६ जिमा धूर बाह्य अनास्थेत राय विप्रकारितय समय कसा चाचा नवाचार कायम्स विश्वस्यागा। बाहामा परिकत्रि॥३६)। एयंतदंदु विदोसि माय मुरगी। संविएसई
पालश्च हिता सीख सारसमुद्रतर इतिश्रीमंासं ॥ ६) जीवन सुरवावहसुखदेड
संसाराविमुञ्चडिय विश्व मिरा इति ग्रहांतीम समददिदिपदरका