Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Jaysundar
Publisher: Sanchor

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Page 216
________________ जीवन काय स्विति । ऋसंख्या अकाल अघन्य काय स्विति। | अंतर्मन / लोगवीचकायं क | चनारंद्रियजीवनाएं चवारंद्रिय संबंधी. कालमाकाशं लिया। चवरिदियकाइ वितेका यं गतकालमुक्का से अंतीमु काया। एडका लई । अधन्यनु यंतर्मु६ एच वारं प्रियजी बना वर्लगं धरमस्य नियतला बोलवाड नया विद मिस ये काम अंतरय दिया दिया था एग सिंवेन्नरपासचा संवाद मनवा वि जयं चत्रियजीवते चित्र का रिकहिन । एकनारकीर बीजनतिर्यचर श्रीजी मनुष्य सुधा देवताभ्यच्या विहाणा महस्मासा) पंचि चिं दिया जाता च च होतं विया दिया। निश्पूयतिरिस्काय। मानुयो दवाय रोदना मदश्र रिसदपांचं प्रियना ॥ साष्टी नारकी मानते ॥ नश्ला | १ शर्कर ग्राहियाण निरश्यासनविहा पुढती सत्र सुनवा पंक ला४ मुला५ तमलाइ तमतमला एमालेले देनार की तणा कालाक्षमाला तमाशात माने हा इशन र प्रयाग सत्रह यरिकित्रिया | ६०] [लागस्त्र पादसं मित्तसाद्यवदि दवा नारकीन कालवितागमुकमियो लिसि ॥६१ । सामान्य रे रेनो की जीवन दिन ही नदी । नवनिर या दिया। पात्रा काल दिला गं । तसिदा चंदन विद॥ ६शा संत इंगाईया । श्रयजद सिया विया विपडुच्च साईया की जीवनयादित सहित ६२ ॥ एहिनर किएक सागरोपम ऋष्टम्बिति । ॥ | अधन्यव। दससह श्रवर समितिऊई ॥ ६५ समद्यव मिया दिय॥६॥ सागारावमामगंजाचास एवियाहिया एटमा इदान गंग। दसवास सदस्सिय पुसा वालुकलाई ता प्य स्यालपक्क राता वायालाय या दिया था। सातेलेद अंणिदाय!! ते सहलानार की लोक तपाई एकईया स

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