Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Jaysundar
Publisher: Sanchor

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Page 157
________________ २० 00000 हे सगवन जीववचनगुप्तिर मिकर। वचनगुप्तिजीव निर्विकार कर। राधावयन्त्राता वयगुन यायां निधिकारनंजय) निधिकारगांव स धनयोगसहित ४ हे सावन जीवका गुनिं करई । जीव काय संवरकर । निर्विकारपाई जीववचनगोपविदं श्रध्यात्मयोग नई दिवसा जामोद जीवकायगुप्तऊंड जींद वली त्रियादिना का यगुन्निशांशात जीव किंड यश काय गुत्त्रयाणां संवरं यश संवारण कायगुत्रमेषु याएं २ पाश्रवकर ५५ हेलगदन जी चमनसमा हरवई मिशंकर) जीव मन समादरई एकाग्रपंक रहे। आवका का मायादासवािराहं कारण समाहारया पजाबीन । ज्ञानता|पर्यायऊपजावई । ज्ञानपर्याय द्यावकाय नाशाय त्रा सम्मनंदि । ४ जीव मिशंकर | Saaवन संवरकर । निश्वग्नपणदर्शनपर्याय मिमा चनि (संत | समाहार या रागगगगातानाशा पजावी सम किच निर्मलकर। हेनगद धनवचनताईसवर शहर मे चारशे ६ वयसमा दारणायाय उपजावनदर्शनपर्याय निर्मलकरी | जीवसुललबोधियणुं प्रदर्श त] वयममादार या जीवदंससोदेसmu छाव विरसादिता । सुलताबादयत्र नि द। बोधिपं निरई। कयाघात । लगवनजीव काया संघरघर्शमिमं करणं । जीवका याना समारंशविरमञ्च चारित्रपर्यायनि त्रेऽवनाबादियत्रनिद्यया कादसमाहारयाग साताठ | काय समाहा रशायासांचरित्राव र्मलकर। नचारित्रपर्याय निर्मल कर बीद या कानचारित्र विसोधनं अनइयघाकात चारित्र विसोधान। च्यारिकेचलक मयकरणं । विशसाहि५) वरित्रययावविरसाहित्रा प्रहरका चरित्रे दिसाह शहरका यात्राशदत्राशिकदलीकम्मोस रव स्त्रिं तिसा. दि.९ जेल 5 3 BUT य

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