Book Title: Udayan Vasavdatta
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 6
________________ उदयन और वासवदत्ता चित्र को बहुत देर देखने के बाद चण्डप्रद्योत ने महामंत्री चकित होकर राजा की ओर देखने लगा। अपने महामंत्री से कहा-/ मात्यवर | पथ्वी का परन्त महाराज, राजाIYचण्डमहासेन जिस यह सर्वश्रेष्ठ नारीरत्न शतनीक तो आपके वस्तु को चाहता है, तो हमारे महलों में सादू हैं न? उसमें रिश्ते नाते बाधा होना चाहिए। नहीं बन सकते। चण्डप्रद्योत की बात सुनकर सभी एक-दूसरे लगभग चार दिन के प्रवास के बाद दूत कौशाम्बी की राजसभा में का मुँह ताकने लगे। राजा ने सामने आसन पहुंचा और राजा शतानीक को चण्डप्रद्योत का सन्देश सुनाया। सन्देश पर बैठे दूत को पुकारा सुनते ही शतानीक क्रोध से भर उठे। बोलेवज्रजंघ ! तुम कौशाम्बी जाकर noor इस धृष्टता के लिए हम तुम्हारा सिर O महाराज शतानीक से हमारा सन्देश उड़ा सकते हैं, परन्तु दूत अवध्य होता | कहो कि हम महारानी मुगावती को है, इसलिए क्षमा करते हैं। फिर भी चाहते हैं। इसलिए वह हमें भेंट कर इसका फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। दे। बदले में जो चाहिए माँग ले। महाराज की जैसी आज्ञा फिर पहरेदारों ने दूत की अच्छी तरह पिटाई। वज्रजंघ कौशाम्बी की ओर चल.पड़ा। की और धक्के देकर राजसभा से निकाल दिया। ।

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