Book Title: Udayan Vasavdatta Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education Board View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना वैर से वैर शान्त नहीं होता। शत्रु खत्म हो जाते हैं, शत्रुता पीढी-दर-पीढी चलती रहती है। वैर और शत्रुता को समाप्त करने के लिए प्रेम, सद्भाव और विनम्रता की शक्ति चाहिए। उदयन और वासवदत्ता का चरित्र इसी शाश्वत सत्य को प्रकट करता है। कौशाम्बी नरेश शतानीक और उज्जयिनीपति चंडप्रद्योत परस्पर साढू के रिश्ते से जुड़े थे परन्तु फिर भी चंडप्रद्योत की राज्यलिप्सा और विषयतृष्णा के कारण दोनों में परस्पर शत्रुता हो गई और चंडप्रद्योत ने कौशाम्बी का विध्वंस करने की ठान ली। किंतु रानी मृगावती की दूरदर्शिता, समयज्ञता और शान्ति तथा प्रेम की शक्ति ने चंडप्रद्योत का हृदय बदल दिया। उदयन के समय में पुन: चंडप्रद्योत कौशाम्बी को नष्ट करने तैयार हो गया, किंतु उदयन और वासवदत्ता ने दोनों राज्यों की इस शत्रुता को प्रेम की धारा से सदा-सदा के लिए शांत कर दिया। उदयन का चरित्र त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में है तथा हिन्दू तथा बौद्ध कवियों ने भी इस पर काव्य, नाटक आदि की रचना की है। महाकवि भास का 'स्वप्न वासवदत्ता' नाटक भी प्रसिद्ध है। प्रस्तुत चित्रकथा में जैन ग्रंथों के अनुसार उदयन और वासवदत्ता चरित्र का चित्रण किया गया है। ( प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान ) LOOK LEARN Jain Education Board मूल्य : २०/- रु. Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E Mumbai-400077. Tel:32043232.Page Navigation
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