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देशना की-
उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत भी भगवान महावीर की देशना सुनने समवसरण में आया। प्रसंग अनुसार भगवान महावीर ने
भव्यो ! विषय, तृष्णा के वश हुआ | मनुष्य संसार में जन्म-जन्म तक दुःख पाता है। विषयमूढ़ मानव, अंधे की तरह विवेकहीन हो जाता है। नीच से नीच कर्म करने में
उसे लाज नहीं आती।
मनु
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देशना के अन्त में रानी मृगावती ने उठकर प्रार्थना की- मृगावती चण्डप्रद्योत के पास आई। हाथ जोड़कर भन्ते ! मैं महाराज
ME WITRA बोली- आपकी आज्ञा हो तो मैं प्रभु चण्डप्रद्योत की आज्ञा लेकराणप्परग्य
चरणों में दीक्षा लेना चाहती हूँ। दीक्षा लेना चाहती हूँ। ANA
देवानुप्रिये । "जैसा सुख हो
वैसा करो।
भगवान की उपस्थिति के प्रभाव से चण्डप्रद्योत का विकार विरोध शान्त हो गया। वह मौन रहा। रानी ने पुनः कहा
मेरा पुत्र उदयन अभी बालक है। इसकी और राज्य की रक्षा का भार मैं आपको सौंप रही हूँ।