Book Title: Udayan Vasavdatta
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 21
________________ उदयन और वासवदत्ता उदयन ने अपने सहायक वसन्तक को कहावसन्तक! हमारी घोषवती वीणा लो और चलो, हाथी को वश में करना है। फिर आप चिन्ता क्यों करते हो?. किन्तु महारा बिफरा मदोन्मत्त हाथी कभी बड़ा भयानक भी बन जाता है। इसलिए साथ में सेना भी रखनी चाहिए। रुकिये महाराज ! हम मानते हैं आपकी वीणा में वह शक्ति है, जो उन्मत्त हाथियों को राग सुनाकर शान्त कर देती है। उदयन हँसा वसन्तक! देखो, वह उपद्रवी हाथी ।, आप लोग निश्चिन्त रहें। जिन हाथियों को सेना काबू में नहीं ले सकती, मेरी यह वीणा उन पर काबू पा लेगी। फिर हाथियों से क्रीड़ा करना तो हमारा शौक है। हम अभी गये, अभी आये। उदयन अपने सफेद घोड़े पर बैठ गये। उनके पीछे एक घोड़े पर वसन्तक बैठ गया। उसके एक हाथ में वीणा थी, एक हाथ में घोड़े की लगाम । पीछे दो शस्त्रधारी घुड़सवार सैनिक चल पड़े। कौशाम्बी की सीमा पर पहुँचकर उदयन को बाँस और केले के घने जंगलों में एक सफेद हाथी उछलता - चिंघाड़ता दिखाई दिया। 金命金 17 महाराज ! ऐसा लगता है देवराज इन्द्र का ऐरावत स्वयं धरती पर आ गया है।

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