Book Title: Udayan Vasavdatta
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 31
________________ उदयन और वासवदत्ता चण्डप्रद्योत के आदेश पर सैनिक अनिलगिरि हाथी पर बैठकर उदयन का पीछा करने लगे। उदयन ने पीछे देखा अरे ! अनिलगिरि हाथी/महाराज ! एक दौड़ता हुआ आ रहा है। घड़ा मार्ग पर गिरा दीजिए। उदयन ने उठाकर एक घड़ा रास्ते पर फोड़ दिया। मकर इस घड़े में हथिनी का मूत्र | फूटे घड़े के पास आते-आते अनिलगिरि रुक गया भरा हुआ था। उसकी गंध से ही | और उसे सूंघने लगा। सूंघकर कुछ उन्मत्त-सा भी यह अनिलगिरि कामोन्मत्त-सा हो । हो गया। जाता है और इधर-उधर हथिनी । महावत मी, को खोजने लगता है। हाथी क्यों रुक गया? कल्ला बार-बार अंकुश मारकर महावत ने हाथी को दौड़ाया। एक पहर बाद फिर उदयन ने देखा, अनिलगिरि आ पहुंचा है। उसने दूसरा घड़ा गिरा दिया। 27

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