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उदयन और वासवदत्ता / पिताश्री ! जन्मदिन का मुझे यही उपहार दे दीजिए "मैं उनसे गंधर्व विद्या सीखना
चाहती हूँ।
अवश्य पुत्री ! मैं तेरी सब इच्छाएँ| पूरी करता रहा हूँ तो यह भी इच्छा
पूर्ण करूंगा।
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प्रसन्न होकर वासवदत्ता ने पिताश्री के चरण स्पर्श किये और फिर छाती से लिपट गई।
चण्डप्रद्योत राजसभा में आये। और महामंत्री से कहा
मंत्रीवर ! राजकुमारी वासवदत्ता उदयन से गंधर्व । विद्या सीखना चाहती हैं। हमने वचन दिया है।
महाराज ! यह कोई कठिन काम नहीं है। उदयन भी आपको अपना संरक्षक और पिता तुल्य मानते हैं। उन्हें आदेश देकर बुला सकते हैं।
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चण्डप्रद्योत ने पत्र लिखकर दत को अवन्ती भेज दिया।
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दूत ने अवन्ती की राजसभा में पहुंचकर पत्र उदयन को भेंट किया। उदयन ने पत्र महामंत्री यौगंधरायण को देते हुए कहा
तात ! आप उचित समझें तो पत्र का संदेश
सुना दीजिए।
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