Book Title: Udayan Vasavdatta
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 8
________________ उदयन और वासवदत्ता महारानी ने कहा- वीरता के साथ समयज्ञता भी राजनीति का अंग है। हमें दोनों को मिलाकर चलना होगा। आप जैसा आदेश देंगी, हम करने को तैयार हैं। रानी मुगावती ने महामंत्री और सेनापति से एकान्त में मंत्रणा की। फिर अपना एक विश्वासी दूत राजा चण्डप्रद्योत के पास भेजा। दूत ने चण्डप्रद्योत के पास पहुँचकर प्रणाम किया और बोला महाराज की जय हो मैं महारानी मृगावती का खास सन्देश लेकर चण्डप्रद्योत ने इधर-उधर देखा। सभी लोग उठकर चले गये। एकान्त देखकर दूत ने कहा 'महाराज ! महारानी मृगावती ने कहलवाया है कि कौशाम्बी की प्रजा अनाथ हो गई है। राजकुमार उदयन अभी पाँच वर्ष का है। अब आप ही हमारे शरणदाता हैं। यह सुनकर चण्डप्रद्योत का चेहरा खिल उठा। मुझे विश्वास था महारानी बहुत समझदार है, ऐसा ही सोचेंगी। मैं भी युद्ध नहीं चाहता हूँ। महारानी ने कहा है, वे अभी महाराज के निधन से बहुत दुःखी हैं। इन घावों को भरने के लिए कुछ समय चाहिए। फिर तो हम आपके ही हैं। जायेंगे कहाँ?

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