Book Title: Udayan Vasavdatta Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education Board View full book textPage 9
________________ चण्डप्रद्योत मन ही मन बोला वाह ! मोर ने पुकारा बादल बरस गया ! उदयन और वासवदत्ता उसने तुरन्त सेनापति को बुलाकर आदेश दिया युद्ध रोक दो। कोई भी सैनिक कौशाम्बी की एक ईंट को भी नहीं छुएगा। | फिर चण्डप्रद्योत ने दूत से कहामहारानी से कहो, मैं हर प्रकार से उनकी रक्षा करूँगा। मुझे न राज्य चाहिए, न ही सम्पत्ति। मैं केवल / उनको ही चाहता हूँ। महाराज ! महारानी महारानी जी के लिए हम सबकुछ मी भी यही सोचती करने को तैयार हैं। कहें तो कल ही हैं। बस, कुछ समय हमारी सेना वापस लौट जायेगी। में सबकुछ सामान्य हो जायेगा। दूत ने रानी मृगावती को चण्डप्रद्योत का उत्तर सुनाया। रानी मन ही मन मुस्करायी। अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे? अगले दिन रानी का दूत पुनः चण्डप्रद्योत के पास आया अवन्तीनाथ के चरणों में महारानी मृगावती का प्रणाम स्वीकार हो।Page Navigation
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