Book Title: Tribhuvansinh Kumar Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 5
________________ चरित्र त्रिभुवन कर्म तदेव जुज्यते / दुष्कर्म नूनं तपसा च हीयते // 1 // कृतकर्मक्षयो नास्ति / कल्पको. | टिशतैरपि // अवश्यमेव भोक्तव्यं / कृतं कर्म शुनाशुनं // 2 // अहो ! जो तात! पूर्वोपार्जितं कर्मैव फलते, नापरः कोऽपि सुखपुःखदाता, यतः-कर्मणो हि प्रधानत्वं / किं कुर्वति शुजा ग्रहाः // वसिष्टदत्तलग्नोऽपि / रामः प्रबजितो वने // 1 // यतो नो! तात! कर्मव प्राणिनां सुखदुःखदाता. इति कुमारवचनं श्रुत्वा राज्ञो मनसि कोपोऽजनि, ततस्तेन कोपा. तुरेण राज्ञा प्रधानादिसमक्ष निजवामकरेण तांबूलबीटकत्रयदानपूर्वं कुमारः स्वदेशानिष्कासितः. यतः--पटुरपदः कविरकविः / शूरो जीरुश्चिरायुरल्पायुः // कुलजः कुलेन हीनो / न वति पुमान्नरपतेः कोपात् // 1 // कुमारोऽपितातादेशं प्रमाणीकृत्व वमनसि चिंतयति-साह. या सीयां लबी हवः / न दु कायरपुरिसाह // काने कुंमल रयणमय / कजल हुइ नयणांह | // 1 // अथाहं मातुराझा गृहीत्वा परदेश यामि, यतः-माता गंगासम तीथे / पिता पु करमेव च // केदागजं गुरुः प्रोक्तं / माता तीर्थं पुनः पुनः // 1 // ततस्तेन मातुः पादयोः प्रणम्य हस्तयुगलेन शिरस्यंजलिं कृत्वा हितशिक्षा याचिता. नदा मात्रा कथितं का शिक्षा

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